दमोह(हटा),जैन धर्म में चार प्रकार के दान बतलाये गये है , आहारदान साधु संतों के शरीर को चलाने के लिए आहारदान किया जाना चाहिए, । आैषधि दान, शरीर में कई प्रकार के रोग पनपते है, स्थिति परिस्थिति प्रतिकूल हो जाती है ऐसे में औषधि दान किया जाता है ।आवास दान जहां साधु संत अपनी तप, साधना करने ठहरते है उसके लिए आवास दान होना चाहिए। उपकरण दान साधु के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए उनके ज्ञान वर्धन के लिए उपकरण जिसमें पिच्छी, कमण्डल, शास्त्र आदि का दान किया जाना चाहिए । दान सदैव आदर और सम्मान के साथ दिया जाना चाहिए । पुण्य कार्य में दिया गया दान फिक्स डिपाजिट की तरह होता है, जो आने वाले समय में दुगना होकर मिलता है । इतना ही नहीं श्रावक का यह भव सुधरता साथ ही परभव भी पुण्यशाली होता है यह बात श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन त्रमूर्ति मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की आज्ञानुवर्ती शिष्या आर्यिका रत्न गुणमति माता जी ने अपने रविवारीय मंगल प्रवचन में कही । आर्यिका श्री ने कहा कि दान का फल श्रावक स्वयं अनुभव कर सकता है । दान एक खसखस के दाने बराबर किया जाता है, उसका फल वट वृक्ष की तरह प्रस्फूटित होता है ।
मंदिर जी में बनने वाली तीन नई वेदी में सहयोग करने वाले हेमकुमार शीला जैन, प्रकाश, नरेन्द्र बाकल, गुलाब पदम शिखर प्रदीप बरौदा तीनों परिवार ने आर्यिका श्री को श्रीफल भेंट किया एवं तीनों परिवार का सम्मान मंदिर कमेटी के अध्यक्ष राकेश, हेमन्त, पं. प्रवीण सोनू आदि ने किया, प्रवचन का श्रवण करने भक्तजन उपस्थित रहे ।
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