बेटी की गुल्लक,,कहानी के लेखक – डॉ. सुशील शर्मा
अशोक माँ को ले जाओ मेरा टर्न कल खत्म हो रहा है ” डॉ नरेश ने अपने छोटे भाई से कहा।
भैया मेरी पत्नी आई सी यू में है घर पर कोई नहीं है माँ की देखभाल कौन करेगा ?प्लीज आप बड़े भैया से बोल दें या मनोज से कह दें मैं बाद में उन्हें कुछ माह ज्यादा रख लूँगा ” अशोक ने टूटे स्वर में कहा।
मैंने उनसे बात की थी वो सभी व्यस्त हैं मैं ऐसा करता हूँ उन्हें गाँव के घर पर छोड़ देता हूँ कुछ दिन बाद तुम पिक कर लेना “डॉ नरेश जोकि आई आई टी दिल्ली में प्रोफ़ेसर हैं ने पाने छोटे भाई अशोक जो कि भोपाल में कोचिंग चलाता है से कहा।
विगत तीन महीने से अशोक बहुत परेशान था उसकी बीबी को खून में थक्का जमने की बीमारी हो गई थी बीबी के इलाज में उसका सारा पैसा पानी की तरह बह गया मानसिक रूप से बहुत परेशान था उसने अपने मझले भाई की बात का कोई उत्तर नहीं दिया उसको झल्लाहट हो रही थी।
अशोक चार भाई थे अशोक को छोड़ कर सभी अच्छी नौकरी पर थे पिता जी स्कूल में टीचर थे उन्होंने सभी बच्चों को अपना पेट काट काट कर उच्च शिक्षा दिलाई और अंत में अपने गाँव के पैतृक घर में अकेले अपनी पत्नी के साथ जिंदगी गुजरते हुए दम तोड़ दिया।
चारों बेटों ने माँ को बारी बारी से तीन तीन महीने के लिए बागवान स्टायल में अपने पास रखने का बेमन से फैसला ले लिया माँ को अपने पास रखने की आज मझले बेटे डॉ नरेश की टर्न खत्म हो गई थी और अशोक की टर्न शुरू हो गई थी।
दुसरे दिन नरेश की पत्नी फ्लाइट से अपनी सास को गाँव के मकान में छोड़ गई अशोक ने अपने गांव के पड़ोसी से कुछ दिनों के लिए माँ की देखभाल करने को कहा।
एक दिन शौच के वक्त माँ बाथरूम में गिर गई और बेहोश हो गई कुछ घंटे बाद पडोसी किसी काम से वहाँ गया तो उसने बेहोश पड़ी माँ को किसी तरह से उठा कर बिस्तर पर रखा और अशोक को खबर की। अशोक अपनी पत्नी को अस्पताल में छोड़ कर गाँव की ओर भागा उसने सभी भाइयों को फोन लगाया लेकिन सब अपने में व्यस्त थे कहने लगे
“देख लेना तुम्हरी टर्न है”
डॉक्टर ने पैन किलर इंजेक्शन दे कर किसिस तरह दर्द को कम किया।
दूसरे दिन अशोक अपनी माँ को लेकर भोपाल पहुंचा और जिस अस्पताल में उसकी पत्नी भर्ती थी उसी में माँ को भर्ती कर दिया।
डॉक्टर X -RAY के बाद बताया की कूल्हे में मल्टी फेक्चर है ऑपरेशन जरुरी है।
अशोक के पास पैसे नहीं थे उसने बड़े भाई को फोन लगाया
“भैया डॉक्टर ऑपरेशन की कह रहा है ”
“अरे प्लास्टर बगैरह करवा दो हड्डियाँ हैं जुड़ जाएँगी अब बुढ़ापें में ये सब होता है और देख लेना मैं दो तीन हज़ार रूपये भेज दूँगा “बड़े भाई ने बहुत लापरवाही से कहा।
ठीक है भैया पैसों की जरुरत नहीं है मैं देख लूंगा :अशोक की आँखों में झर जहर आँसू बह रहे थे।
नरेश भैया को फोन लगाया “भैया डॉक्टर ऑपरेशन के लिए कह रहा है। ”
करीब चालीस हज़ार का खर्च है “अशोक ने टूटती आवाज़ में कहा।
“ठीक है मैं अपने दोस्त से बोल दूंगा वो तुम्हे पचास हज़ार की व्यवस्था कर देगा आठ दस दिन में लेकिन उसके पैसे लौटा देना “डॉ नरेश की बात सुन कर अशोक आवाक रह गया।
“भैया मेरी लौटाने की स्थिति होती तो मैं आपसे क्यों माँगता लेकिन अब आप चिंता न करें मैं व्यवस्था कर लूँगा। “अशोक ने रोते हुए फोन काट दिया।
उसने छोटे भाई दीपक को फिर फोन नहीं लगाया उसे मालुम था कोई न कोई बहाना वहाँ से भी आ जायेगा।
सोच रहा था माँ कितने प्यार से उन चारों को खाना खिलाती थी ,दुलारती थी आज वही माँ दर्द में तड़फ रही है और वो बेबस है।
पापा आप क्यों उदास हैं। “अशोक की पाँच साल की बेटी ने उसके आँखों को पढ़ते हुए कहा।
कुछ नहीं बेटा बस दादी और तुम्हारी माँ ठीक हो जाएँ बीएस यही चिंता है। ‘अशोक ने अपने आँसू रोकते हुए कहा।
“पापा रुकिए आप मैं अभी आई। “अशोक के चेहरे पर विस्मय के भाव थे।
ये लीजिये पापा। “बेटी के हाथ में गुल्लक थी।
“मुझे मालूम हैं मम्मी और दादी के इलाज में बहुत पैसे लग रहें हैं इसके सारे पैसों से आप दादी और मम्मी का इलाज करवा लीजिये। “बहुत ही भोलेपन से बेटी ने गुल्लक को जमीन पर गिरा कर तोड़ दिया।
अशोक आवाक सा अपनी बेटी को देख रहा था दौड़ कर उसने अपनी बेटी को छाती से चिपका लिया
तभी दरवाजे पर डॉक्टर भास्कर ने प्रवेश किया जिनके लड़के को अशोक कोचिंग में पढ़ाता था उन्होंने अशोक की बेटी को गोद में लेकर प्यार किया।
“बेटी ये तुम्हारी गुल्लक के पैसों से नहीं अब तुम्हारी दादी और माँ का इलाज मैं करूँगा अपने खर्च पर अशोक तुम्हे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है मैंने अस्पताल प्रबंधन से बात कर ली है और वो तैयार हो गए हैं। ” डॉ भास्कर ने सांत्वना देते हुए अशोक से कहा।
अशोक की आँखों में अपनी बेटी और डॉक्टर भास्कर के लिए कृतज्ञता के आँसू थे।