है अकेलापन सभी में
हैं यहाँ अविराम भीड़ें
चल रहीं हैं दिग्भ्रमित
है अकेलापन सभी में
कौन किससे क्या कहे ?
धूप के आगोश में हैं
दूब की परछाइयाँ ।
रक्तरंजित स्वप्न देखें
रात की तनहाइयाँ
उड़ गए पंछी क्षितिज में
नीड़ अब वीरान हैं ।
शब्द कोलाहल भरे हैं
भाव सब सुनसान हैं।
झूठ द्विगुणित हो रहा है
सत्य निर्वासन सहे।
झूठ की फसलें खड़ी हैं
सत्य के परिवेश में।
रावणों की बस्तियाँ हैं
राम के इस देश में।
अँजुरी भर चाँदनी में
रात भर जीना मुझे ।
दर्द के पैमाने भरे हैं
उम्र भर पीना तुझे।
विषधरों की बस्तियों में
कोई तो शंकर रहे।