दो कुंडलियां
(1) विषय: प्रदूषण और पर्यावरण चेतना
हरियाली घटती गई, सूख गया सब नीर |
कंक्रीट जंगल खड़े, साँसे विकल अधीर ||
साँसे विकल अधीर, शहर अंदर से काले।
दूषित धरा समीर, सूखते दरिया नाले।
कत्ल हुए हैं वृक्ष,धरा अब विष की प्याली।
धरती माँ की पीर, कहाँ मन की हरियाली।
(2) विषय: सोशल मीडिया और युवावर्ग
माया मोबाइल नशा, वर्चुअल संग लीन।
भाव बिना संवाद के, जीवन हीन महीन।
जीवन हीन महीन,नवयुवक सच से भागें।
सोशल का है जाल , युवा मन अब तो जागें।
मोबाइल की कैद ,सभी को है यह भाया।
सब हैं इसमें लीन,मिटेगी कब यह माया।
✒️सुशील शर्मा✒️