दमोह हटा,”शब्द मनुष्य के आचरण को धारण करते हैं, इसीलिए उनका प्रयोग बहुत सोच-विचार कर करना चाहिए। अध्ययन और अध्यापन करते समय विशेषत: अध्यापकों को इसके प्रति गम्भीरता बरतनी पड़ेगी, इसे समझना होगा और अपने विद्यार्थियों को इस दिशा में प्रयासशील रहना होगा।”
शासकीय महाविद्यालय, हटा, दमोह (म० प्र०) के हिन्दी-विभाग की ओर से ‘शिक्षण-प्रशिक्षण मे मौखिक और लिखित भाषाओं की उपयोगिता और महत्ता’ विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय कर्मशाला में उपर्युक्त उद्बोधन में प्रयागराज से पधारे भाषाविज्ञानी और समालोचक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपने विचार प्रकट किये थे।
आरम्भ मे महाविद्यालय के संरक्षक और प्राचार्य डॉ० पी० के० ढाका ने अभ्यागतगण का स्वागत किया।
उन्होंने महाविद्यालय के सभागार में आयोजित कर्मशाला में प्रशिक्षणार्थियों को ध्वनि, वर्णमाला, स्पर्श व्यंजन, उपसर्ग, विरामचिह्नों, एक-जैसे शब्दप्रयोगों के भिन्न अर्थ और भावों को सोदाहरण समझाये थे। जो शब्दव्यवहार पुस्तकों में नहीं मिलते, उन्हें उन्होंने मौखिक और लिखित स्तर पर सिखाये। शब्दों की शुद्धता क्यों, कैसे तथा किसलिए होती है, इन्हें विधिवत् समझाया। डिजिटल बोर्ड पर शब्दों की वर्तनी को लिखते हुए, उनके शुद्ध और उपयुक्त उच्चारण को करना सिखाया। समस्त प्रशिक्षणार्थियों का कहना था– हमने अभी तक जो पढ़े-समझे थे, वे ग़लत थे। आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय शब्द सिखाने और यह देखने कि प्रशिक्षणार्थियों ने शुद्ध वर्तनी का लेखन किया है कि नहीं और जितना समझाया-लिखाया जा रहा है, इनके प्रति व कितने जागरूक हैं, लगभग सभी प्रशिक्षणार्थियों के समीप पहुँचते थे। उन्होंने उन शब्दों के प्रति प्रशिक्षणार्थियों के ध्यान आकर्षित किये थे, जो आगे चलकर उनके लिए प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की दृष्टि से हितकर सिद्ध होंगे।
इसी अवसर पर साहित्यकार और सारस्वत अतिथि डॉ० श्यामसुन्दर दुबे ने कहा– स्मृति और कल्पना के माध्यम से आप अपने जगत् की कल्पना कर सकते हैं। भाषिक चेतना इन दोनो के मध्य स्थित है। आदमी भाषा के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करता है।
दमोह में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दीविभागाध्यक्ष डॉ० अनीता नायक ने अतिथि प्रवक्त्री के रूप में कहा– कोई भी शिक्षण भाषा के बिना नहीं होता। भाषा हमारे व्यक्तित्व को सुदृढ़ करती है।
भाषाविद् और विशिष्ट अतिथि एन० आर० राठौर ने कहा– हम जो भी बोलते हैं, उसके लिए हमे अपनी प्रयोगशाला को जानना चाहिए। मुख हमारी भाषा की प्रयोगशाला है।
इस पूरी कर्मशाला की सूत्रधार और संयोजिका महाविद्यालय में हिन्दी-विभाग की सहायक प्राध्यापक आशा राठौर ने प्रभावकारी संचालन किया।
इस कर्मशाला में आकाश कुर्मी, राहुल चौधरी, नरेश कुमार कोरी, प्रशान्त सूर्यवंशी, प्रणय ठाकुर, डॉ० माला हकवाड़िया, डॉ० शिवानी राय, ममता सोनी, ज्योति सेन, प्रभुदयाल चक्रवर्ती आदि उपस्थित थे।
previous post