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March 28, 2024
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कत्थक सम्राट पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज का निधन

कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज का सोमवार को निधन हो गया। पद्म विभूषण से सम्मानित 83 वर्षीय बिरजू महाराज ने दिल्ली में अंतिम सांस ली। उनके निधन से संगीत प्रेमियों सहित बॉलीवुड जगत में भी शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पंडित बिरजू महाराज के निधन पर शोक जताया है। पीएम मोदी ने ट्वीट किया- भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी पंडित बिरजू महाराज के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा- पंडित बिरजू महाराज का निधन एक युग के अंत का प्रतीक है। उनके निधन से भारतीय संगीत और संस्कृति में एक गहरा शून्य बन गया है। वह कथक को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाने में अद्वितीय योगदान देकर एक प्रतीक बन गए। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना।

जीवन परिचय – बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ के ‘कालका-बिन्दादीन घराने’ में हुआ था। बिरजू महाराज का नाम पहले दुखहरण रखा गया था। यह बाद  में बदल कर ‘बृजमोहन नाथ मिश्रा’ हुआ। इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो ‘लखनऊ घराने’ से थे और वे अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। बिरजू महाराज जिस अस्पताल में पैदा हुए, उस दिन वहां उनके अलावा बाकी सब लड़कियों का जन्म हुआ था, इसी वजह से उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। जो आगे चलकर ‘बिरजू’ और फिर ‘बिरजू महाराज’ हुए।

पिता को गोद में नजर आए पूत के पांव
पिता अच्छन महाराज को अपनी गोद में महज तीन साल की उम्र में ही बिरजू की प्रतिभा दिखने लगी थी। इसी को देखते हुए पिता ने बचपन से ही अपने यशस्वी पुत्र को कला दीक्षा देनी शुरू कर दी। किंतु इनके पिता की शीघ्र ही मृत्यु हो जाने के बाद उनके चाचाओं, सुप्रसिद्ध आचार्यों शंभू और लच्छू महाराज ने उन्हें प्रशिक्षित किया। कला के सहारे ही बिरजू महाराज को लक्ष्मी मिलती रही। उनके सिर से पिता का साया उस समय उठा, जब वह महज नौ साल के थे।

सुर संगीत के महारथी बन उभरे, कई नृत्यावलियां बनाईं
बचपन से मिली संगीत व नृत्य की घुट्टी के दम पर बिरजू महाराज ने विभिन्न प्रकार की नृत्यावलियों जैसे गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग बहार इत्यादि की रचना की। सत्यजीत राॅय की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के लिए भी इन्होंने उच्च कोटि की दो नृत्य नाटिकाएं रचीं। इन्हें ताल वाद्यों की विशिष्ट समझ थी, जैसे तबला, पखावज, ढोलक, नाल और तार वाले वाद्य वायलिन, स्वर मंडल व सितार इत्यादि के सुरों का भी उन्हें गहरा ज्ञान था।

देश-विदेश में हजारों नृत्य प्रस्तुतियां दीं
1998 में अवकाश ग्रहण करने से पूर्व पंडित बिरजू महाराज ने संगीत भारती, भारतीय कला केंद्र में अध्यापन किया व दिल्ली में कत्थक केंद्र के प्रभारी भी रहे। इन्होंने हजारों संगीत प्रस्तुतियां देश में देश के बाहर दीं। बिरजू महाराज ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किए। उन्हें प्रतिष्ठित ‘संगीत नाटक अकादमी’ , ‘पद्म विभूषण’ मिला। मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा इन्हें ‘कालिदास सम्मान’ से नवाजा गया। 

13 साल की उम्र में दिल्ली में सिखाने लगे थे नृत्य
बिरजू महाराज ने मात्र 13 साल की उम्र में ही दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ किया। कुछ समय बाद इन्होंने कत्थक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षण कार्य आरंभ किया। यहां ये संकाय के अध्यक्ष थे तथा निदेशक भी रहे। तत्पश्चात 1998 में इन्होंने वहीं से सेवानिवृत्ति पाई। इसके बाद कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही एक नाट्य विद्यालय खोला।

पांच बच्चों व नाती पोतों का परिवार छोड़ गए
बिरजू महाराज का भरापूरा परिवार है। उनके पांच बच्चे हैं। इनमें तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनके तीन बच्चे ममता महाराज, दीपक महाराज और जय किशन महाराज भी कथक की दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं। 

ये पुरस्कार भी मिले
बिरजू महाराज को कई सम्मान मिले। 1986 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इनके साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मानद मिली। 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 2002 में उन्हें लता मंगेश्कर पुरस्कार से नवाजा गया। 2012 में ‘विश्वरूपम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का और 2016 में ‘बाजीराव मस्तानी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। 

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