34 C
Bhopal
April 19, 2024
ADITI NEWS
धर्म

दुर्जन का कभी अनादर नहीं करना ,मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज

*दुर्जन का कभी अनादर नहीं करना **

*मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज*

कुंडलपुर। सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर में आदिपुराण ग्रंथराज का स्वाध्याय चल रहा है। मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने स्वाध्याय कराते हुए बताया कि ग्रंथ में आचार्य जिनसेन महाराज ने स्पष्ट लिखा है कि दुर्जन का अनादर नहीं करना ।क्यों ?प्रश्न खड़ा होता है। इसका सीधा अर्थ निकलता है कि दुर्जन का आदर करना चाहिए। परंतु ऐसा नहीं है ।आचार्य की वाणी में अथाह अर्थ होता है। उनके वचन देशाभरवक होते हैं अर्थात अनंत अर्थात्मक होते हैं। आचार्यों ने दुर्जन का अनादर करने को भी नहीं कहा ।आचार्यों ने मध्यस्थ भाव रखने को कहा है। यह मध्यस्थ भाव रूपी महामंत्र का प्रयोग करके हम अपने को सुखी बना सके हैं ।मध्यस्थ भाव अर्थात ना राग और ना देष। जब भी किसी के प्रति आदर का भाव आता है तो वह राग के कारण से आता है ।और जब भी किसी के प्रति अनादर का भाव आता है तो वह द्वेष के कारण आता है। हम राग द्बेष से ऊपर उठें ना उठे, परंतु राग द्वेष कम करके भी जीवन में सुख का अनुभव कर सकते हैं ।दुर्जन के प्रति आदर का भाव बिना राग के और अनादर का भाव बगैर द्वेष के नहीं आ सकता। जिस तरह बहुत दिनों से जमे हुए बांस की गांठदार जड़ स्वभाव से टेढ़ी होती है ।उसे कोई सीधा नहीं कर सकता ।उसी प्रकार चिर संचित मायाचार से पूर्ण दुर्जन मनुष्य स्वभाव से टेढ़ा होता है। उसे कोई सीधा सरल परिणामी नहीं कर सकता ।अथवा आप लोग कहते हैं ना जिस तरह कोई कुत्ते की पूंछ को सीधा नहीं करता। उसी तरह दुर्जन को भी सीधा नहीं किया जा सकता ।क्योंकि यह स्वभाव है और स्वभाव में परिवर्तन स्वयं ही किया जा सकता है ।अगर वह करना चाहे तो हम बलपूर्वक उसके स्वभाव को परिवर्तित करना चाहते हैं यह हमारी मूर्खता है ।ईष्या करना निर्दयी होना और गुणी जीवो से प्रेम नहीं करना यह कुछ सामान्य लक्षण है जिससे दुर्जन की पहचान होती है। उसे सज्जन बनाने की हठ में कई सज्जन दुर्जन बनते देखे गए हैं। क्योंकि नकारात्मकता में आकर्षण होता है ।आप देखते हैं कहीं ‘ना ‘वाला होता है अर्थात कुछ निषेध को कहा जाता है तो व्यक्ति उस ओर ज्यादा आकर्षित होता है। जहां सूचना पटल पर लिखा होता है यहां कचरा फेंकना मना है ।सबसे ज्यादा कचरा वहीं पर मिलता है ।जन्मत: कोई भी व्यक्ति दुर्जन नहीं होता ।पर संगति के कारण वह दुर्जन बन जाता है ।इसलिए हमें हमारी संगति को सत् कार्यों में लगे सज्जनों के साथ करनी चाहिए। और दुर्जन का कभी अनादर भी नहीं करना चाहिए ।क्योंकि वह उसका बैरभाव कब आप से निकाल ले किस रूप में निकाल ले कहा नहीं जा सकता।

Aditi News

Related posts