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April 24, 2024
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अकाल में किए गए कार्य ही अकाल मृत्यु का मुख्य कारण है,मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज

अकाल में किए गए कार्य ही अकाल मृत्यु का मुख्य कारण है,मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज
कुंडलपुर ।श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में विराजमान पूज्य मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने कहा जिस काल में जो कार्य करना चाहिए वह ना करके उसी कार्य को किसी अन्य काल में करना ही अकाल मृत्यु का कारण बनते हैं। इस रोग युग में मुख्यतः प्रत्येक व्यक्ति रोगों से पीड़ित है ।इन सब का मुख्य कारण है हमारी दैनिकचर्या। हमारी दिनचर्या हुआ करती थी प्रभु भजन( भक्ति) से प्रारंभ और प्रभु भजन( भक्ति) से समापन। परंतु आज भोजन (भुक्ति) से प्रारंभ और भोजन (भुक्ति) से समापन। भुक्ति की कथा भक्ति से ही हो सकती है, भुक्ति से नहीं। भुक्ति से मात्र रोगकथा ही हो सकती है ।आज जहां देखो वहां रोगमय वातावरण है रोगमय पर्यावरण है ।आज व्यक्ति अपने रोग का वैभव सुनाते समय अपने आप को बड़ा गौरवान्वित महसूस करता है। प्रायः करके सभी जगह यही सुनने को मिलता है कि मुझे इतने बड़े-बड़े रोग हैं ।मुझे इतनी महंगी दवाइयां चल रही हैं ।मुझे इतना महंगा उपचार चल रहा है ।मैं इतने बड़े डॉक्टर का पेशेंट हूं ।मैं इतने बड़े चिकित्सालय में भर्ती रहा आदि आदि ।उस व्यक्ति के मुख से यह सब सुनकर ऐसा लगता है जैसे उस रोगी को किसी राजा का वैभव प्राप्त हो गया हो। राजा महाराजाओं की तरह ठाट बाट के साथ वह उस वैभव की चर्चा करता है ।हमारी दैनंदिनी क्रियाएं अगर व्यवस्थित हो जाएं तो हमारा जीवन व्यवस्थित होने में समय नहीं लगेगा ।जीव विज्ञान तो आज खूब पढ़ा जा रहा है परंतु जीवन विज्ञान की ओर प्रायः करके दृष्टि नहीं जा रही है ।जीवन विज्ञान के महत्वपूर्ण अंग है शयन विज्ञान ,आहार विज्ञान, विहार विज्ञान, निहार विज्ञान आदि आदि। सही समय पर किए गए कार्य आपको सफलता प्रदान करते हैं ।आज प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है ,परंतु स्वस्थ रहने के उपाय को अपनाना नहीं चाहता ।आज हमारा जीवन फ्रिज से शुरु और फ्रिज से ही समाप्त हो रहा है ।आहार की तरो- ताजगी ही हमारे जीवन में तरो- ताजगी ला सकता है ।फ्रिज का जीवन अपने आप को फ्रिज करना है। आज हमारे विचार, आचार (आचरण) ,आहार सब फ्रिज हो चुके हैं। कोल्ड स्टोर की सामग्री हमारे लिए कैंसर जैसे महारोग की आमंत्रण स्थली बन चुकी है ।जीवन को तरो-ताजा बनाया बनाना चाहते हो तो तरो-ताजा आहार शैली को ना भूलना ।भूलना हो तो इस आधुनिकरण को भूल जाना पर भूल से भी जीवन विज्ञान को नहीं भूलना ।जिसने जीवन विज्ञान को समझ लिया है उसने जीवन जीने की कला और मरण की कला को सीख लिया है ।सभी कार्य को सही काल में करने से वे कार्य सही कार्य की श्रेणी में आते हैं वरना नहीं।
संकलन— जयकुमार जैन जलज हटा कुंडलपुर
आदरणीय -सादर प्रकाशन हेतु

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