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April 23, 2024
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धर्म

जो प्राप्त है वही पर्याप्त है,मुनि श्री निरंजन सागरजी

जो प्राप्त है वही पर्याप्त है,मुनि श्री निरंजन सागरजी

कुंडलपुर। प्रबंधन के पाठ्यक्रम में भावी प्रबंधकों को एक पाठ अवश्य पढ़ाया जाता है ऑप्टिमम यूजेस ऑफ अवेलेबल रिसोर्सेस अर्थात उपलब्ध संसाधन का अधिकतम प्रयोग ।यह पाठ प्रबंधन कला की रीढ़ है ।आचार्य कहते हैं “किम दारिद्र्यम असंतोष:” अर्थात दरिद्रता क्या है? असंतोष !सबसे बड़ा दरिद्री प्राणी वह है जिसके पास संतोष रूपी धन नहीं है ।एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है “संतोषी सदा सुखी” अपने पास उपलब्ध संसाधन से अपने जीवन को साधना बहुत बड़ा जीवन विज्ञान है । जिसने “साइंस ऑफ लिविंग “जान लिया उसने जीवन के रहस्य को जान लिया ।”हाउ टू लीव सेटिस्फाइड लाइफ” एक संतुष्टि पूर्ण जीवन यापन यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। आचार्य कहते हैं संतोष धन जिसके पास है उसके आगे कुबेर के खजाने को भी वह कुछ नहीं समझता ।आज प्रत्येक व्यक्ति शांति चाहता है। सुख चाहता है। परंतु देखने को प्राय विपरीत ही मिलता है ।आज प्राय: करके सभी जगह असंतोष का वातावरण है ।जिसका परिणाम अशांति, कलह , विवाद आदि देखने को सहज ही मिल रहा है। आज इनका हर घर-घर साम्राज्य है ।प्रत्येक व्यक्ति इनसे प्रभावित है। इन सब का सबसे बड़ा प्रभाव बढ़ती हुई नकारात्मकता ।यहां तक की व्यक्ति आज आत्महत्या जैसे कृत्य कर गुजरने में पीछे नहीं हटता। जहां जहां असंतोष है वहां वहां असफलता है ।असंतुष्ट व्यक्ति ही असफल व्यक्ति माना जाता है ।जिसकी संतुष्टि का कोई मापदंड नहीं है, वह व्यक्ति अपने आप को कभी सफल मान ही नहीं सकता है ।आज भारतीय नवयुवक जो विश्व को हिलाने की दम रखता है ।वह स्वयं पश्चिमी सभ्यता की ओर आकृष्ट हो रहा है। आज नवयुवक वर्ग ही सबसे ज्यादा असंतोष से ग्रसित है ।इस अशांत ,कलह भरे वातावरण में दिशा विहीन नवयुवक पीढ़ी मात्र धन व भोगो को ही केंद्र में रख कर भाग रही है ।संतुष्ट रहना या होना जैसे शब्द उनके शब्दकोष में है ही नहीं ।इस ओर और की दौड़ है सब ओर और इस ओर का कोई छोर नहीं होता ।पहले पढ़ाया जाता था आवश्यकता आविष्कार की जननी है ।आज सिखाया जाता है आविष्कार आवश्यकता की जननी है। वर्तमान में युवा वर्ग कहता है” ये दिल मांगे मोर “आचार्य कहते हैं “जो प्राप्त है वही पर्याप्त है”। कौरवों की असंतुष्टि ही महाभारत जैसे महायुद्ध का कारण बनी ।श्री कृष्ण जी जब पांडवों का संदेश लेकर पहुंचे तब उस संदेश को सुनकर दुर्योधन अशांत हो गया। श्री कृष्ण का संदेश बड़ा संतुष्टि परक था ।”दे दो केवल पांच ग्राम रखो अपनी धरती तमाम”। जहां संतोष है ,संतुष्टि है, वहां वहां सफलता है ,शांति है।

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