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April 20, 2024
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तोल मोल कर बोल, ऐसे बोल का होता मोल,मुनि श्री निरंजन सागर जी

*तोल मोल कर बोल, ऐसे बोल का होता मोल*

*मुनि श्री निरंजन सागर जी*

कुंडलपुर ।साइंस ऑफ वर्ड अर्थात शब्द विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है, जो अपने आपमें अनोखा रहस्यमय विज्ञान है ।पावर आफ वर्ड अर्थ शब्द की अपनी शक्ति होती है ।इंपैक्ट ऑफ़ वर्ड अर्थात शब्द का अपना प्रभाव होता है ।फोर्स आफ वर्ड अर्थात शब्द की अपनी गति होती है। शब्द विज्ञान के कुछ आधारभूत बिंदु हैं जैसे- शब्द का प्रयोग कब करना कैसे करना कितना करना और क्यों करना। शब्दों का प्रयोग करते समय जिसने इन आधारभूत बिंदुओं का ध्यान रखा है उसके शब्द, शब्द शक्ति को प्राप्त होकर अपना विशेष प्रभाव डालते हैं। जिससे सामान्य शब्द भी विशेषता को प्राप्त हो जाते हैं। शब्द विज्ञान में शब्द का उच्चारण भी अपना विशिष्ट स्थान रखता है। जैसे स्वजन अर्थात संबंधी और श्वजन अर्थात कुत्ता ।कम्युनिकेशन ऑफ वर्ड अर्थात शब्दों का संप्रेषण भी शब्द विज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है। जैसे प्राचार्य ने कहा “कल विद्यालय बंद रखा जाएगा” और चपरासी ने सूचना पटल पर लिख दिया “कल विद्यालय बंन्दर खा जाएगा “उच्चारण की स्पष्टता और व्यवस्थित संप्रेषण आपके व्यक्तित्व में भी निखार लाता है। शब्द की भी अपनी गति होती है। शब्द से अर्थ और अर्थ से ज्ञान यह शब्द की गति होती है ।शब्द के अर्थ को जाने बिना वह शब्द हमारे लिए ज्ञान रूप में परिणत नहीं हो पाएगा। फोर्स आफ वर्ड अर्थ शब्द की गति ।वर्ड टु मीनिंग एंड मीनिंग टू नॉलेज ।

जैसे मान लीजिए यहां पर कोई कन्नड़ भाषा भाषी व्यक्ति आ जाए और कुछ कहे ।उसके मुख से निकलने वाले शब्द आपको सुनाई बस देते हैं परंतु समझ में नहीं आते हैं ।क्यों? क्योंकि आपको उन शब्दों का अर्थ नहीं पता है ।जिससे उन शब्दों का ज्ञान आपको नहीं हो पा रहा है। ऐसे अर्थ विहीन शब्द गतिमान ना होकर गति रहित ही रहते हैं। वही आपको आपकी भाषा में कुछ कहे तो आप तुरंत समझ जाते हैं। ऐसा क्यों ?क्योंकि आप उन शब्दों के अर्थ से भलीभांति परिचित हैं ।जिससे वह आपके लिए ज्ञान कराने में सहयोगी रहते हैं ।कहा भी है “शब्द ब्राह्मणि निष्णात पर ब्रह्माधिगच्छति” अर्थात शब्द ब्रह्म में पारंगत व्यक्ति पर ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है ।यह सिद्धांत इस बात की सूचना देता है कि साधक को पहले शब्द शक्ति और उसकी मर्यादा तथा भाव का ज्ञान आवश्यक है ।यदि उसे शब्द के वाच्यार्थ, भावार्थ और तात्पर्यार्थ की प्रक्रिया का बोध नहीं है तो वह भटक सकता है। वस्तुतः शब्द भावों के ढोने का एक लंगड़ा साधन है ।जब तक संकेत ग्रहण ना हो तब तक उसकी कोई उपयोगिता ही नहीं है ।एक ही शब्द संकेत भेद से भिन्न भिन्न अर्थों का वाचक होता है ।इसलिए दर्शन शास्त्रों में एक पक्ष यह भी उपलब्ध होता है कि शब्द केवल वक्ता की विवक्षा को सूचित करते हैं ।पदार्थ की वाचक नहीं है ।शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं। प्रसंग के अनुसार निकाले गए शब्दों के अर्थ ही सही ज्ञान कराते हैं ।वही शब्द शस्त्र है, वही शब्द शास्त्र है ।वही शब्द बाण है वही शब्द वीणा है ।आज विश्व में जितना विनाश हो रहा है उसका मुख्य कारण शब्द विज्ञान की अनभिज्ञता ही है ।शब्दों का सही संयोग, सही अर्थ के साथ ,सही दिशा में करना हम सबका ध्येय होना चाहिए।

संकलन —जयकुमार जैन जलज हटा

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