शब्दों का खेल ,कभी मेल ,तो कभी बेमेल, मुनि श्री निरंजन सागर जी
कुंडलपुर। आचार्यों ने हित ,मित और प्रिय शब्दों का प्रयोग करने को कहा है। हितकारी वचन अर्थात जो दूसरों के लिए और अपने लिए कल्याणकारी हो। जिसमें अपना वा दूसरों का स्वार्थ सधता हो, वे हितकारी वचन नहीं है। इसका अर्थ कल्याण है ना कि स्वार्थ। मितकारी वचन अर्थात संक्षिप्त ,सारगर्भित, सांकेतिक( टू द प्वाइंट)। यदि दो शब्द से काम चल जाए तो तीसरा शब्द बोलने की आवश्यकता नहीं है ।लोकोक्ति भी है कि “समझदार के लिए इशारा ही काफी है”। प्रिय कारी अर्थात अमृतमय सत्य। सामान्य रूप से कहने में यही आता है कि” सच कड़वा होता है।” एक जगह हमें पढ़ने को मिला कि सच केवल कड़वा ही नहीं होता सच अमृत के समान भी होता है। जिनके भीतर विष होता है उन्हें वह विषाक्त मालूम होता है ।पर वह होता अमृतमय है। जिस प्रकार ज्वर से संतृप्त पुरुष को कुछ भी खिलाएं पिलाएं उसे उसका स्वाद कड़वा ही लगता है ।आचार्यों ने स्पष्ट कहा है” सत्यम अपि विपदे” अर्थात ऐसा शब्द जिसमें दूसरों को क्षति पहुंचती हो वह सत्य भी असत्य की श्रेणी में है ।यह मात्र जैन दर्शन में पढ़ने, देखने और जानने को मिलता है। पूरी दुनिया सत्य के बारे में यही मानती है कि जैसा देखा, सुना ,जाना वैसे का वैसा कह दो इसी का नाम सत्य है। आचार्य कहते हैं सत्य वद्- प्रियंवद् अप्रियं न वद्। प्रिय असत्यं अपि न वद्। अप्रियं सत्य कदापि ना वद्। इस प्रसंग को एक उदाहरण से समझते हैं ।एक राजा को अपना चित्र बनवाना था। इसके लिए बहुत सारे कलाकार बुलवाएं। राजा का चित्र तो सुंदर ही बनना चाहिए। पर राजा के साथ मुश्किल यह थी कि उनकी एक आंख नहीं थी ।अब राजा का सुंदर चित्र बनाना है। अगर चित्र सच्चा बनाते हैं तो सुंदर नहीं बनेगा क्योंकि एक आंख नहीं बनेगी ।एक चित्रकार ने कहा इससे कोई मतलब नहीं जो सच है वही बनाएंगे अपन तो। उसने राजा की एक आंख नहीं बनाई बाकी तो सब सुंदर था। राजा को वह चित्र पसंद नहीं आया। दूसरे कलाकार ने सोचा अरे वाह सुंदर बनाना चाहिए। सच से क्या मतलब उसने राजा की दोनों आंखें एकदम दुरुस्त एकदम बढ़िया बना दी ।उसे देखकर राजा ने कहा यह चित्र झूठा है ।सुंदर तो है ।यह प्रिय मालूम पड़ता है लेकिन झूठा है। पहले वाला अप्रिय मालूम पड़ रहा था वह सच्चा था। दोनों ही रिजेक्ट (अस्वीकृत )हो गए ।सच जो प्रिय है वह भी ठीक नहीं है और झूठ जो कि प्रिय है वह भी ठीक नहीं है ।तीसरे कलाकार ने चित्र बनाया राजा बहुत शूरवीर है बलवान है और तीरंदाज है ।वह हाथ में धनुष बाण लिए है और निशाना साध रहे हैं ।निशाना साधने पर एक आंख बंद रहती है। चित्र में इस प्रकार एक आंख बंद दिखाई गई ।वह चित्र पास हो गया ।क्योंकि वह सत्य भी है प्रिय भी है ।आप सब समझ रहे हैं इस बात को ।हमें सत्य भी और प्रिय भी किस तरह से इस बात का ध्यान रखना है। इस प्रकार अपन अगर थोड़ी सावधानी रखकर अपने वचनों का प्रयोग करें तो अपन अपने जीवन को बहुत ऊंचा उठा सकते हैं ।आपके वचन वाद विवाद का कारण न बने। बल्कि सही वचनों का प्रयोग वाद को पलटने की क्षमता रखता है। शब्दों का खेल ,कभी मेल, तो कभी बेमेल ।शब्द अर्थ बने अनर्थ ना हो तभी तो सार्थकता है ।नहीं तो वाद विवाद ।वाद विलोम रूप से कह रहा है वा—द, द—वा। शब्दों में प्राणदायक शक्ति भी होती है और प्राणहारक भी।
संकलन– जयकुमार जैन जलज