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May 21, 2025
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“और फिर चुप्पी चीख़ उठी” (अतुकान्त कविता –सुशील शर्मा)

और फिर चुप्पी चीख़ उठी”

(अतुकान्त कविता –सुशील शर्मा)

पहलगाम की वादियों में

जहाँ बर्फ़ की चादरें

धरती को शांति की परिभाषा देती थीं,

वहाँ आज

ख़ून की बूंदें

गर्म होकर

धरती से सवाल कर रही थीं —

“मैं किसका हूँ?”

 

टूरिस्ट बस की खिड़की से

झाँकती थीं उम्मीदें

एक छुट्टी, एक राहत

एक पल जीवन का…

पर बंदूक़ों की नली से

निकले शब्द नहीं,

बारूद थे —

जो धर्म पूछते थे

और उत्तर न मिलने पर

प्राण हर लेते थे।

 

कोई भगवा चुनता,

कोई बिंदी पहचानता,

कोई ‘राम’ कहने से पहले

मर जाता।

 

वे हँसते रहे

उनकी गोलियों में धर्म था,

लेकिन मनुष्यता नहीं।

 

एक पत्नी बैठी थी

पति की लाश के पास

बेजान पत्थर सी

क्योंकि उसके पति के

हिंदू सीने में लगी थीं

मुस्लिम गोलियां

 

और फिर चुप्पी चीख़ उठी —

“ये युद्ध नहीं, नरसंहार है!”

 

देश जागा,

पर नींद से नहीं,

शोक से।

 

अब केवल आँसू नहीं बहेंगे —

अब बहेंगे शपथ,

अब उगेगा प्रतिशोध,

अब राष्ट्र कहेगा —

“हम नहीं झुकेंगे,

हम नहीं भूलेंगे।”

 

✒️सुशील शर्मा✒️

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