शारदेय नवरात्र का आगमन, वर्षा ऋतु की विदाई का संदेश देते कांस का फूल,जितेन्द दुबे
ब्युरो पन्ना । खेतों की मेङों में इन दिनों कांस के फूल खूब इतरा रहे हैं. सफेद रंग के फूलों की रजत छटा जहां किसानों एवं राहगीरों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे है ।वहीं हमारे बुजुर्गों का अनुभव बताता है की यह फूल जहां शारदीय नवरात्र के आगमन का संदेश देते है, वहीं वर्षा ऋतु के समापन का भी अहसास
कराते हैं . हमारे बुन्देलखण्ड की परंपरा में आदिवासी भील एवं राजवंश के लोग जब अपने लोक नृत्यों में खुश होकर न्रत्य करते हैं तो इस फूल का उपयोग महिला पुरूष सिर पर लगाकर ढोल धमाकों की करतल ध्वनी में उल्लास के साथ न्रत्य करते है ।
रामायण काल से भी जुङा नाता
आदि कवि गोस्वामी तुलसीदास जी की ‘रामचरितमानस’ के किष्किंधा कांड में यह चौपाई विशेष रूप से प्रसिद्ध है और भगवान श्रीराम के विभावना को अद्वितीय ढंग से व्यक्त करती है. इस चौपाई के माध्यम से श्रीराम लक्ष्मण को कह रहे हैं कि अब बरसात गुजर चुकी है और शरद ऋतु, जिसे सुंदरता का प्रतीक माना जाता है, आ गई है. सारी पृथ्वी कांस के फूलों से भर गई है, इससे मौसम का परिवर्तन स्पष्ट हो रहा है. बुजुर्गों से आपने सुना होगा कि कांस में फूलों की खिली बात का अर्थ होता है कि मौसम में बदलाव आ रहा है, और अब बारिश की प्रतीक्षा है.।