उठो उठो तुम हे रणचंडी
(गीत)सुशील शर्मा
आँखों में भर कर अंगारे
मन प्रतिशोध की ज्वाला हो।
नारी को भोग्या समझा है
हवस के कूकर मुत्तों ने।
नारी को हरदम नोचा है
नरपिशाच से कुत्तों ने।
हर दिन ऐसी कितनी बेटी
लुटती सरे बजारों में।
जाने कितने हवस के कुत्ते
बैठे हैं अँधियारों में।
कौन बचाएगा नारी को
जब भक्षक रखवाला हो।
आज पिता की आँखें चिंतित
माँ की सारी नींद उड़ी है।
भाई का मन रहे सशंकित
विपदा कैसी आन खड़ी है।
नारी नहीं आज तक रक्षित
किस समाज में हम जीते।
सोती सत्ता तंत्र निकम्मा
घूँट जहर के हम पीते।
गैरों की क्या करें शिकायत
जब दुश्मन घरवाला हो।
नारी रामायण है घर की
नारी है गीता का ज्ञान।
नारी है कुरान की आयत
नारी बाइबल का आख्यान।
नारी तुम अब सशक्त बन जाओ
रणचंडी का रूप धरो।
ये समाज अब बना शिखंडी
अपनी रक्षा आप करो।
हे रणचंडी निकल पड़ो तुम
कर नरपशुओं की माला हो।
आज नहीं तुम अबला नारी
तुम सशक्त इंसान हो।
समता ओज सुरक्षा शुचिता
पूर्णशक्ति आधान हो।
कलयुग का महिषासुर देखो
तुमको आज नकार रहा है
उठो उठो तुम हे रणचंडी
समय तुम्हे पुकार रहा है।
ओंठो पर जयघोष का नारा
अरु हाथों में भाला हो।
(विश्व महिला दिवस पर)