55वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में ‘वेंक्या’, ‘भूतपोरी’ और ‘आर्टिकल 370’ फिल्मों के माध्यम से दिखाई गईं प्रभावशाली कहानियां
फिल्म ‘वेंक्या’ में दिखाया गया, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता किस तरह व्यक्तियों, यहां तक कि अपराधियों में भी बदलाव ला सकती है: सागर पुराणिक, निर्देशक
डरावनी कहानी से कहीं बढ़कर है ‘भूतपोरी’; यह एक ऐसी प्रेतात्मा की कहानी है जो मानवीय क्रियाकलापों से प्रभावित होती है: सौकार्य घोषाल, निर्देशक
‘आर्टिकल 370’ दर्शकों को राजनीतिक व्यवस्था के बारे में बताने और अगली पीढ़ी को प्रेरित करने का प्रयास करती है: आदित्य सुहास जांभले, निर्देशक
55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) की ‘भारतीय पैनोरमा-फीचर फिल्म’ श्रेणी में तीन शानदार फिल्मों का प्रदर्शन किया गया: कन्नड़ फिल्म, ‘वेंक्या’, बांग्ला फिल्म ‘भूतपोरी’ और हिंदी फिल्म ‘आर्टिकल 370’। दूरदर्शी फिल्म निर्माताओं की ये फिल्में महज कहानी कहने से आगे बढ़कर अपने आप की तलाश, मुक्ति, देशभक्ति और बलिदान के साथ-साथ प्रेम, जीवन और परलोक से जुड़ी जटिल भावनात्मक यात्रा की गहन पड़ताल करती हैं।
55वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (आईएफएफआई) में पत्र सूचना कार्यालय की ओर से आयोजित मीडिया से मुलाकात के दौरान, ‘वेंक्या’ के निर्देशक सागर पुराणिक ने फिल्म के निर्माण की चुनौतियों के बारे में चर्चा की। उन्होंने वेंक्या के चरित्र को अंधकार से प्रकाश की ओर विकसित होने वाला बताया, जो इस भूमिका की जटिलता को उजागर करता है। जब फिल्म निर्माण से जुड़ी कठिनाइयों के बारे में पूछा गया, तो पुराणिक ने बताया कि इसका फिल्मांकन जोखिम भरे स्थानों पर किया गया था, जिसमें बाढ़ की अतिरिक्त चुनौती भी शामिल थी। हालांकि उन्होंने स्थानीय सरकार से मिले सहयोग की सराहना की। लोकेशन के चयन के विषय में उन्होंने बताया कि इसके लिए मौलिक दृष्टिकोण अपनाया गया, जिसमें वेंक्या की तलाश ने विविध स्थानों के चयन का मार्गदर्शन किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता में व्यक्तियों, यहां तक कि अपराधियों को भी बदलने की ताकत है।
‘वेंक्या’ के निर्माता पवन वाडेयार ने कहा कि फिल्म की शूटिंग 12 राज्यों में की गई। इसमें भारत की जीवंत सांस्कृतिक विविधता की झलक मिलती है। उन्होंने बताया कि फिल्मांकन के लिए स्थानों का चयन उनकी जीवंत, रंग-बिरंगी प्रकृति और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के आधार पर किया गया, जो फिल्म के मर्म से मेल खाता है।
‘भूतपोरी’ के निर्देशक सौकार्य घोषाल ने बताया कि यह फिल्म एक आम डरावनी कहानी से कहीं बढ़कर है। यह एक प्रेतात्मा की जीवनी पर आधारित है, जो मानवीय क्रियाकलापों से बहुत प्रभावित है। यह परलोक की अवधारणा पर आधारित है। उन्होंने कहा कि इस तरह की कई भारतीय फिल्में हॉलीवुड से प्रभावित हैं, लेकिन उनका उद्देश्य प्रेतात्मा की एक प्रामाणिक भारतीय कहानी का निर्माण करना था।
फिल्म ‘भूतपोरी’ की कॉस्ट्यूम डिजाइनर पूजा चटर्जी ने बताया कि उन्हें डिजाइन की प्रेरणा बांग्ला साहित्य में पाई जानी वाली वेशभूषा के विस्तृत विवरण से मिली। उन्होंने स्क्रीन पर यथार्थवादी चरित्र के लिए इन संदर्भों का उपयोग किया।
‘आर्टिकल 370’ के निर्देशक आदित्य सुहास जांभले ने अपनी फिल्म के राजनीतिक थ्रिलर होने के कथ्य के बारे में बात की। यह फिल्म व्यापक स्तर पर शोध के बाद बनी है। उन्होंने बताया कि फिल्म का उद्देश्य दर्शकों को राजनीतिक व्यवस्था के बारे में बताना और अगली पीढ़ी को प्रेरित करना है। उन्होंने फिल्म के विषय पर भी बात की और कहा कि यह जबरन राष्ट्रवाद को बढ़ावा नहीं देती, बल्कि पात्रों का चित्रण यथार्थवादी तरीके से करती है। जांभले ने भारत के सभी क्षेत्रों में फिल्म संस्कृति को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया, ताकि युवा फिल्म निर्माता अपनी पहचान बना सकें।
‘आर्टिकल 370’ की लेखिका मोनल ठाकुर ने इसकी शोध प्रक्रिया के बारे में जानकारी साझा की और बताया कि उन्होंने इसके संबंध में जानकारी जुटाने के लिए खोजी पत्रकारों से परामर्श लिया। उन्होंने बताया कि फिल्म के राजनीतिक और संसदीय तत्वों को किस तरह से जानकारीपूर्ण और मनोरंजक दोनों प्रकार से डिज़ाइन किया गया है। मोनल ठाकुर ने कश्मीर में फिल्मांकन की चुनौतियों के बारे में भी बात की और स्थानीय पुलिस के सहयोग की सराहना की। उन्होंने वहां फिल्मांकन के अनुभव को वास्तव में जादुई बताया।
फिल्मों के बारे में
वेंक्या: हुबली शहर की अराजकता में संघर्षरत गुंडा वेंक्या अपने बिछड़े हुए भाई गन्या को तलाशने की कोशिश करता है, ताकि संपत्ति के अधिकार सुरक्षित हो सकें और आर्थिक बर्बादी से बच सके। वेंक्या सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए संपूर्ण भारत की यात्रा पर निकलता है, वह विविध संस्कृतियों से गुजरता है, घोटालों और दयालु अजनबियों से रू-ब-रू होता है। रास्ते में, वह व्यक्तिगत विकास और मुक्ति का अनुभव करता है। यह बात उसके चरित्र में अंततः परिवार और विनम्रता से जुड़ी भावना की झलक दिखलाती है।
भूतपोरी: इस डरावनी फिल्म में, एक मृत महिला की बेचैन आत्मा उसकी मौत के रहस्य को उजागर करने के लिए एक युवा लड़के से मिलती है। मतभेदों के बावजूद, उनके बीच अप्रत्याशित बंधन दिखता है क्योंकि वे जीवन, मृत्यु और परलोक की खोज करते हुए एक भावनात्मक यात्रा पर निकले हैं। फिल्म में कई रोमांचकारी मोड़ आते हैं। साथ ही दिल को छू लेने वाले क्षणों को जोड़ते हुए, यह फिल्म जीवित और दिवंगत लोगों के जीवन की अपनी अनूठी पड़ताल को लेकर दर्शकों को आकर्षित करती है।
अनुच्छेद 370: “2016 में कश्मीर में अशांति के बाद, प्रधानमंत्री कार्यालय से आतंकवाद से लड़ने और अनुच्छेद 370 को निरस्त करके क्षेत्र में संघर्षों के सहारे चल रही व्यवस्था को खत्म करने के लिए युवा एजेंट ज़ूनी हक्सर को राजेश्वरी स्वामीनाथन की ओर से एक गुप्त मिशन पर तैनात किया जाता है। आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद ज़ूनी को पदावनत कर दिया गया, और उसे दिल्ली में सलाहुद्दीन जलाल के साथ रहने का काम सौंपा गया। परवीना अंद्राबी की आलोचना के बाद, ज़ूनी कश्मीर लौटती है, जहाँ वह पत्थरबाजी की घटना के लिए धन मुहैया कराने वाले एक नेटवर्क का पर्दाफाश करती है। उसका मिशन भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ एक जटिल लड़ाई में बदल जाता है।”