विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
(शोक गीत)
जिनको तिल तिल कर था पाला।
मुँह का जिनको दिया निवाला।
जिनके मुख को देख देख कर
जीवन में था रोज उजाला
उन माँ बाप के प्यारों को
क्यों तुमने किया है दूर
विधि तुम क्यों इतनी हो क्रूर।
सुबह सबेरे जो मेरे थे
सुख खुशियों को जो घेरे थे
किलक किलक कर जो हँसते थे
चंद्रमुखी से जो चेहरे थे।
उसी शाम की बेला में सब
रोने को क्यों हैं मजबूर
विधि तुम क्यों इतनी हो क्रूर।
पिता के कांधे सुत की ठठरी।
कितनी बड़ी ये दुख की गठरी।
जीवन भर का है यह दुखड़ा
हाय तू किस्मत कितनी शठ- री।
खुशियाँ उड़ गईं यूँ जीवन से
विधि तेरा कैसा ये दस्तूर
विधि तुम क्यों इतनी हो क्रूर।
पल छिन दिन गति से ही झूमें।
कालचक्र के पहिया घूमें।
कहाँ गया वो प्यारा बेटा
प्यार से जिसका माथा चूमें।
तिनके का कभी मिटा सहारा
क्यों दुखों का आया पूर
विधि तुम क्यों हो इतनी क्रूर।
सुशील शर्मा