सनातनियों के घरों में पोला पर्व पर मिट्टी के बने बैलों और काष्ठ से निर्मित घोड़े की पूजा-अर्चना की गई, कल बच्चे सामूहिक रूप से चलाएंगे घुल्ला,
गाडरवारा । भारतीय संस्कृति, सामाजिक रीति रिवाजों और सांस्कृतिक लोक परम्पराओ के संवर्धन की दिशा में अनेक पावन पर्व मनाये जाते हैं इसी श्रृंखला में भाद्रपद अमावस्या के दिन आज पोला पर्व प्रचलित भाषा में घुल्ले कहा जाता है घर घर मनाया गया, इस दिन मिट्टी के बने बैलों और काष्ठ से निर्मित घोड़े आदि की पूजा-अर्चना की जाती है । इनका श्रृंगार और पीठ पर गोंदे (खल्तानुमा) रखी जाती है जिनमें मैदा और बेसन से बने खुरमा बतियां भरकर बच्चे दुसरे दिन सड़कों पर खेलते चलते अपने घरों के समीप स्थित देवालयों में दर्शन कर खुरमा बतियां प्रसाद स्वरूप खाते हैं । अनेक वर्षों से यह बालप्रिय, कृषकों और घुमक्कड़ व्यवसाय से जुड़े पर्व को आज की नवपीढी और नौनिहाल उमंग उत्साह से मना कर लोक-संस्कृति कीअपनी एक अमूल्य धरोहर को बनाए रखे हैं ।
यह भी उल्लेखनीय है कि ऐसा शास्त्रों में बताया गया है कि भाद्रपद की इस अमावस्या तिथि के दिन पोलासुर नामक दैत्य का भगवान श्री कृष्ण ने वध किया था इसलिए यह पर्व मनाया जाता है तो वही दूसरी ओर बैल पोला त्योहार के दौरान कृषि मे उनके अमूल्य योगदान के लिए सम्पूर्ण गौ जातीय वंश के प्रति सम्मान और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में पूजा अर्चना के साथ विद्वानो, बुजुर्गों ने जनाभिमुखी बनाया गया है ।
कल 11:00 बजे नौनिहाल चलाएंगे घुल्ला
सनातन समाज ने कल एकम के दिन 15 सितम्बर दिन शुक्रवार को 11 बजे से सामूहिक रूप से पोला पर्व पर घुल्ला चलाने का बृहद आयोजन हनुमान मंदिर पुरानी गल्ला मंडी से शिवालय चौक तक रखा गया है । जिसमें आप सभी अपने अपने नौनिहालों से घुल्ला चलवाकर प्राचीन परंपराओं को बरकरार रखने एवं आयोजन को सफल बनाने के लिए अधिक संख्या में भाग लेकर लोक महत्व के त्योहारों को लोकव्यापी बनाये रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर बच्चों को इन त्योहारों से अवगत जरूर कराये।