सांईखेड़ा दो कुलो की उद्धारक होती है बेटियां,केशव गिरी महाराज
श्री दादा धूनी वाले की लीलास्थली साईंखेड़ा गाडरवारा जिला नरसिंहपुर में दादा धुनी वालो के कृपा पात्र आजीवन परिक्रमा वासी पूज्य संत शिवानन्द जी महाराज के द्वारा 21 दिवसीय अनुष्ठान में श्री राम दरबार मंदिर मकरोनिया सागर के महंत एवं ब्रह्मलीन ग्रस्त संत पंडित श्री देव प्रभाकर शास्त्री दद्दा जी महाराज की कृपा पात्र गृहस्थ संत केशव गिरी महाराज के मुखारबिंद से श्री शिव महापुराण के अष्टम दिवस पर उमड़ा विशाल जन सैलाब। कथा के उपरांत सायं कालीन बेला में पूज्य संत श्री शिवानंद जी महाराज जी के द्वारा दादा श्री दादा धूनीवाले का विशेष श्रृंगार व गाजे बाजे के साथ मनमोहक महाआरती की गई महाआरती में प्रतिदिन सायं 7:30 बजे प्रारंभ होती है आरती उपरांत महाराज जी के कर कमलों से अखंड धुनी माई में नाना प्रकार की कई कुंटल औषधि युक्त हवन सामग्री से हवन प्रारंभ हुआ प्रतिदिन हवन में आम, पपीता, अनार, केला, सेव, तरबूज, गन्ना, गाय का शुद्ध घृत, शक्कर, नारियल, लौंग,इलायची, कपूर, इत्यादि अनेका अनेक औषधि युक्त हवन सामग्री से कई कुंटल, कई सौ किलो हवन सामग्री धुनी माई में समर्पित कि गई।
शिव महा पुराण कथा के आठवें दिन कथा वाचक केशव गिरी जी महाराज ने कहा वर्तमान में अपने बच्चों को सनातन धर्म से जोड़ना है।महाराज ने कहा आज मां बाप को बेटियों को कुछ दे पाए या ना दे पाए पर अच्छे संस्कार जरूर देना चाहिए।दो परिवारो का मान और सम्मान होती है बेटियां और दो कुलो की उद्धारक होतो है बेटियां महाराज जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समाज में जब पुरुष विद्याध्यन करता है तो सिर्फ पुरुष पड़ता है लेकिन जिस परिवार में बेटियां पड़ती(शिक्षित) होती हैं वह पूरा परिवार ही शिक्षित हो जाता हैं ।
शिव विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि आत्मा का परमात्मा से मिलन ही शिव में लीन हो जाना है। भगवान शंकर वैराग्य के देवता माने गए है, परंतु शिव ने विवाह भी कर संसार को गृहस्थ आश्रम में रहकर भी वैराग्य व योग धर्म का अनुशरण करने का तरीका दिया।
कथा वाचक ने कहा कि शिव परिवार में भगवान के वाहक नन्दी, मां पार्वती का शेर, गणेश जी का मूसक और कार्तिकेय का वाहन मोर है। शिव के गले मे सर्प रहते हैं जो सभी विपरीत विचारधारा के बीच सामंजस्य रखना ही शिव पुराण सिखाता है। भगवान के विवाह के वर्णन में मैनादेवी व हिमालय राज की पुत्री के रूप मे मां पार्वती का जन्म लिया। प्रारम्भिक काल मे शिव की तपस्या करना, उसी दौरान तारका सुर के आतंक को खत्म करने के लिए शिव का विवाह अवश्य। क्योंकि शिवपुत्र से ही तारकासुर का अंत हो सकता था ऐसा वरदान भगवान से प्राप्त किया था तारकासुर ने।तब जाकर शिव पार्वती का विवाह हुआ। इसी क्रम में हम जाने रे कछु नोने से हुईये। राजा हिमाचल के दामाद भानेजू भजन पर जमकरथिरके के भक्तगण।