“शिविर में कराटे, सुलेख और गौसेवा के संदेश के साथ संस्कारों का सशक्त संचार”
सुसनेर /12 जून , श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा लोक पुण्यार्थ द्वारा संचालित श्री कामधेनु गुरुकुलम सालरिया में चल रहें व्यक्तित्व विकास शिविर के षष्ठम दिवस पर शिविरार्थियों ने कराटे और जिम्नास्टिक जैसे खेलों का अभ्यास किया, जिससे न केवल आत्मरक्षा की कला सीखी बल्कि आत्मविश्वास और अनुशासन की भावना भी विकसित हुई।
शिविर के प्रथम सत्र में श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा लोक पुण्यार्थ न्यास के कार्यकारी अधिकारी आलोक सिंहल ने शिविरार्थियों को को संबोधित करते हुए बताया कि पथमेड़ा विश्व की सबसे बड़ी गौसेवा संस्था है, जहां 65 गौशालाओं में 1.57 लाख से अधिक गौमाताओं की मातृत्व भाव से सेवा होती है। संस्था द्वारा नशा-मुक्त, सात्विक और पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली को बढ़ावा दिया जाता है। उन्होंने बताया कि ‘श्री कामधेनु गुरुकुलम’ नाम से एक नया प्रकल्प मध्यप्रदेश के गौसेवक मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने अपने 61 वें जन्मदिवस पर प्रारंभ किया है और इस गुरुकुलम में अभ्यारण्य में गौसेवा कर रहें ग्वालों एवं अभ्यारण्य क्षेत्र जुड़े ग्रामों के मेधावी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा, आवास और भोजन की व्यवस्था होगी और सूर्या फाउंडेशन एवं श्री कामधेनु गुरुकुलम के संयुक्त तत्वाधान में क्षेत्र के बालकों के व्यक्तित्व को निखारने के लिए यह शिविर चल रहा है ।
भोजनोपरान्त हुए सत्र में सूर्या फाउंडेशन के गो सेवा एवं डेयरी प्रभारी गौतम नायक ने बालकों की लेखनी सुधार हेतु सुलेख और पत्र लेखन के व्यावहारिक और रोचक तरीके सिखाए। उन्होंने अक्षर सज्जा, रेखा संतुलन और मात्रा निर्धारण के सूत्र बताए — जैसे “मैं सीधा, मेरी रेखा सीधी” और “आधे में अक्षर, चौथाई में मात्रा।” इसके बाद उन्होंने पत्र लेखन का अभ्यास कराया, जिसमें बच्चों ने जिला कलेक्टर को समापन समारोह में आमंत्रित करने के लिए पत्र लिखा। यह सत्र बच्चों के लिए रचनात्मक, अभ्यासात्मक और अत्यंत प्रेरणादायक रहा। शिविर में ‘बेस्ट सुलेख’ और ‘बेस्ट पत्र लेखन’ के लिए पुरस्कार भी घोषित किए गए हैं।
रात्रि में आयोजित अंताक्षरी प्रतियोगिता में शिविरार्थियों ने भजन, देशभक्ति गीतों और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से वातावरण को संगीतमय और जोशपूर्ण बना दिया।
व्यक्तित्व विकास शिविर के रात्रि कार्यक्रम में सुसनेर जनपद के कार्यकारी अधिकारी राजेश कुमार शाक्य ने भी भारतीय गुरुकुल परम्परा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि त्रेतायुग से लेकर द्वापर युग में भगवान राम एवं कृष्ण ने भी अपने गुरु के सानिध्य में रहकर शिक्षा ग्रहण की है लेकिन जैसे जैसे पाश्चात्य संस्कृति हम पर हावी हुई है हम धीरे धीरे हमारी गुरुकुल परम्परा को भूलते गए है और धीरे धीरे हम अवनति की ओर गए है इसलिए हमें पुनः गुरुकुल परम्परा की और लौटना होगा।