साधना के लिए कई प्रकार के साधन हुआ करते हैं जिनके माध्यम से आत्मा का विकास होता है,आचार्य श्री समय सागर जी महाराज
कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा साधना के लिए कई प्रकार के साधन हुआ करते हैं जिनके माध्यम से आत्मा का विकास होता है कभी-कभी नौकर्मो से बचने के लिए भी उपदेश देते हैं नौकर्मो से बचने का भाव भी नहीं होना चाहिए क्योंकि जो बचता है वह साधक कमजोर माना जाता है किसी भी परिस्थिति में तटस्थ भाव के साथ वस्तु का स्वभाव जो दिख रहा है उसका प्रतिकार नहीं करना चाहिए जो साधक प्रौण होता है वह किसी प्रकार से प्रतिकूलताओं से बचता नहीं बल्कि तटस्थ भाव के साथ रहता है उस भाव में वह निर्णय करता चला जाता है प्रतिकार का भाव क्यों ?प्रतिकार का भाव जब आता है उस समय धर्म ध्यान नहीं कर पाता प्रतिकार और ग्रहण यह दोनों प्रकार के भाव होते हैं धर्म ध्यान में संभव नहीं है इस प्रकार बड़े-बड़े जो साधक होते हैं किसी प्रकार से मन से वचन से काय से प्रतिकार नहीं करते ।प्रतिकार यदि करना है तो नौकर्म का प्रतिकार मत करो। क्योंकि नौकर्म के माध्यम से कर्म अपना फल देता है नौकर्म को कब तक हटाते रहोगे आप इसी में पूरा समय निकल जाएगा ।मान लो स्वाध्याय करने के लिए बैठे हैं श्रमण और एक दो व्यक्ति आकर के सामने ही बैठ गए डिस्टर्ब हो रहा है उनको हटाओ उनको हटाते हैं वह चले जाते हैं तो दूसरे चार और आते हैं उनको हटाओ इसके अपेक्षा से स्वयं हटकर के मान लो अन्यत्र पहुंच गए वहां पर आकर के बैठ जाते हैं सुगंधी फैलती रहती है तो भ्रमर वही आएंगे कहां-कहां प्रतिकार करोगे क्षेत्र से क्षेत्रांतर होने के उपरांत भी सामने जो व्यक्ति है वह भी कुछ चाहता है वह आएगा वह आपके लिए बाधक सिद्ध हो सकता है नहीं भी हो सकता है इसलिए अपने को तटस्थ भाव के साथ क्योंकि बहुत अल्प समय बचा है और प्रत्येक व्यक्ति के प्रतिकार प्रतिकार करने लग जाते हैं उससे होना कुछ भी नहीं है गुरुदेव का ये कहना है चार दीवार के बीच में बैठे हो फिर भी प्रतिकार करना चाहते मान लो कोई श्रमण महाश्रमण है और वह अन्यत्र पहुंच जाए वहां पर भयानक वन में पहुंच जाए और गुफा में पहुंच जाए प्रश्न खड़ा होता है गुफा के अंदर क्यों वहां पर भी सुरक्षा का प्रावधान है। शरीर की रक्षा आत्मा की रक्षा करो शरीर की क्या रक्षा करना चाहे चार दीवार के बीच रहो पूरा का पूरा एयर टाइट करके रहो फिर भी परिणमन रुकने वाला नहीं है समझने के लिए बे मौसम के फल फ्रिज आदि में रखते ताकि वे फल सुरक्षित रहें ध्यान रखो कहीं भी रखो काल वहां भी विद्यमान है उसके द्वारा परिणमन वह रुकने वाला नहीं है। इसलिए हम प्रतिकार करें चाहे ना करें हमारा अंतरंग जो कर्म का उदय करने वाला है वह फल दे रहा उस का क्षय करने के लिए इसलिए साधना बताई गई है ।नौकर्म से बचने बार-बार प्रयास करता कमजोर साधक ऐसा करता ये मुझे दुख दे रहा है मुझे पीड़ा पहुंचा रहा है यह मेरा शत्रु है यह मेरा मित्र है यह सहयोगी है यह साधक है यह मेरे लिए वाधक है इस प्रकार का जो भाव है इस प्रकार के भाव से कभी भी धर्म ध्यान होने वाला नहीं। चाहे आज विचार कर लो चाहे चार दिन बाद कर लो चार साल बाद कर लो चार भव के बाद कर लो कुछ भी कर लो रास्ता तो यही है इसलिए प्रतिकार का भाव हमें नहीं करना।