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January 20, 2025
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गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम पर हुई कार्यशाला “#हम_होंगे_कामयाब” अभियान के तहत महिलाओं को किया जा रहा जागरूक

गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम पर हुई कार्यशाला

“#हम_होंगे_कामयाब” अभियान के तहत महिलाओं को किया जा रहा जागरूक

राज्य शासन द्वारा संचालित “हम होंगे कामयाब” अभियान को गति देने कलेक्टर श्रीमती शीतला पटले के निर्देशन में जिले में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और जेंडर आधारित हिंसा की रोकथाम के लिए कार्यशाला, शपथ, पोस्ट, निबंध आदि विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं व किशोरियों को जागरूक कर रहे हैं। लोगों, धर्मगुरूओं और शादी में अपनी सेवायें देने वाले विभिन्न आयोजनकर्ताओं को बाल विवाह नहीं करने की समझाइश दे रहे हैं।

 

इसी क्रम में गर्भधारण पूर्व और प्रसूति पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम 1994 (पीसी एवं पीएनडीटी एक्ट 1994) विषय पर कार्यशाला का आयोजन कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में आयोजित किया गया। कार्यशाला में अपर कलेक्टर श्रीमती अंजली शाह ने पीसी एवं पीएनडीटी एक्ट 1994 के क्रियान्वयन के तहत जिला स्तर पर गठित निगरानी समिति, प्रत्येक नर्सिंग होम्स में गठित समिति, सोनोग्राफी सेंटर संचालन के लिए आवश्यक लायसेंस के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रत्येक गर्भवती महिला को सोनोग्राफी जांच के लिए फार्म- एफ भरना आवश्यक होता है। जहां कहीं भी गर्भावस्था शिशु संबंधी जांच की जा रही है, वहां का रिकार्ड उचित रूप से संधारित होना चाहिये। बगैर अनुमति के सोनोग्राफी सेंटर एवं नर्सिंग होम्स का संचालन नहीं किया जा सकता। यदि किसी भी नागरिक को लिंग चयन करने वाले या कराने वाले व्यक्ति/ चिकित्सक/ अस्पताल/ नर्सिंग होम्स की जानकारी प्राप्त होती है, तो उसे तत्काल इसकी सूचना संबंधित विभाग/ एजेंसी को देना चाहिये।

 

कार्यशाला में स्वास्थ्य से रिसोर्स पर्सन के रूप में उपस्थित डॉ. देवेन्द्र रिपुदमन सिंह ने पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस तकनीक का आविष्कार गर्भवस्था के दौरान आने वाली समस्याओं के निदान के लिए‍ किया गया है, लेकिन लोगों ने इसका दुरूप्रयोग कर लिंग चयन करना प्रारंभ कर दिया है, जिससे अनगिनत बालिकायें जन्म के पहले मार दी गई है। इसका विपरीत प्रभाव जन्म के समय लिंग अनुपात पर पड़ा है। उन्होंने बताया कि यह अधिनियम लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध, निदान केन्द्रों का नियमन और उल्लंघनकर्ताओं के लिए 3 साल तक की जेल का प्रावधान है। भ्रूण के लिंग का पता लगाना और बताना देनों अवैध हैं। अल्ट्रासाउंड और निदान केन्द्रों का पंजीकरण अनिवार्य है। इस कानून का सख्त जांच और निरीक्षण का प्रावधान है। इस अधिनियम में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान का प्रावधान भी किया गया है। इस अधिनियम के परिणाम स्वरूप भारत में लिंग अनुपात में धीरे- धीरे सुधार हो रहा है और महिला समानता का महत्व बढ़ा है। फिर भी सामाजिक पूर्वाग्रह, उल्लंघनों की कम रिर्पोटिंग दूर दराज के क्षेत्रों में जागरूकता अब भी बड़ी चुनौतियां हैं।

 

कार्यशाला में स्थानीय परिवाद समिति की अध्यक्ष श्रीमती संध्या कोठारी ने भी अधिनियम का परिचय देते हुए कहा कि सरकार द्वारा संचालित सामाजिक सरोकार वाली योजनाओं के फलस्वरूप लिंग अनुपात में सुधार हो रहा है। विज्ञान वरदान भी है और अभिशाप भी है। अत: जो तकनीक गर्भस्थ शिशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपयोग हो रही है, वहीं भ्रूण हत्या के रूप में दुरूपयोग भी रहो रहा है। इस कार्यशाला में बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री शिवकुमार रैकवार ने भी अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने बताया कि जमीनी स्तर के कार्यकर्ता अपने संबंधों के आधार पर अच्छा कार्य कर सकते हैं और ऐसे कानूनों के बारे में हर व्यक्ति तक जानकारी पहुंचा सकते हैं।

 

कार्यशाला में जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास ने संबंधित विषय पर उपयोगी चर्चा की। कार्यशाला में बाल कल्याण समिति सदस्य राजेन्द्र राजपूत, श्रीमती प्रिया चौहान, श्रीमती दिव्या नेमा, स्थानीय परिवाद समिति की सदस्य श्रीमती गुलाब गुप्ता, सीडीपीओ श्रीमती रंजिता कौरव, पर्यवेक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, वन स्टाप सेंटर तथा जिला बाल संरक्षण इकाई के कर्मचारी मौजूद थे। कार्यशाला का संचालन बाल संरक्षण अधिकारी श्री सौनिध्य सराठे एवं आभार सहायक संचालक महिला एवं बाल विकास श्री राधेश्याम वर्मा ने किया।

 

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