जय कुमार जैन कुंडलपुर
सबसे बड़े जैन मुनिसंघ को 59 दिनों के लम्बे इंतजार के बाद मंगलवार को सबसे बड़े गुरूजी के रूप मे निर्यापक श्रमण मुनि श्री समय सागर जी महाराज मिल गए। यह पद आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की समाधि होने के बाद से खाली था। प्रसिद्ध जैन तीर्थ कुण्डलपुर मे आयोजित भव्यतम समारोह मे सैकड़ो मुनियो, आर्यकाओ और सामाजिक प्रतिनिधियों की अनुमोदना के साथ निर्यापक मुनि श्री समय सागर जी महाराज ने आचार्य पद का दायित्व संभाला। वर्तमान दौर के सबसे बड़े बदलावकारी घटना के देशभर के हजारों श्रावक श्रविकाए साक्षी बने।
उल्लेखनीय है कि संत, कवि, चिंतक के रूप देश दुनिया मे विख्यात जैनाचार्य विद्यासागर जी महाराज की गत 17 फ़रवरी की रात्रि को सल्लेखना पूर्वक समाधि हो गई थी। वह जनवरी 23 मे महाराष्ट्र के अंतरिक्ष पार्श्व नाथ सिरपुर मे चातुर्मास के बाद छत्तीसगढ़ के चन्द्रगिरी तीर्थ पहुंचे थे। दिसंबर महीने मे तिल्दा नेवरा मे पंच कल्याणक मे शिरकत करने के बाद वापस चंदगिरी पहुँचे थे। इस बीच उनके स्वास्थ्य मे गिरावट देखा जा रहा था पर कभी किसी ने सपने मे भी नहीं सोचा था आचार्य श्री का यह पड़ाव अंतिम साबित होने वाला है। स्वास्थ्य मे लगातार गिरावट के बाद आचार्य श्री ने अन्न, जल के अलावा आचार्य पद का त्याग कर दिया था। गत 17 फ़रवरी की मध्यरात्रि के बाद आचार्य श्री ब्रम्हालीन हो गए थे। उन्होंने समाधि के पूर्व अपने पहले शिष्य निर्यापक मुनि श्री समय सागर महाराज का आचार्य पद का दायित्व सौपने की मंशा जाहिर किया था।
अब बड़े गुरूजी
कर्नाटक के सदलगा निवासी मलप्पा जी और श्रीमंती के घर 27 अक्टूबर 58 को जन्मे शान्तिनाथ जो अब मुनि श्री समय सागर महाराज है ने हाइस्कूल तक मराठी मे लौकिक शिक्षा हासिल करने के बाद अतिशय क्षेत्र महावीर जी मे 2 मई 75 को ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया था। उन्होंने 18 दिसंबर 75 को सिद्ध क्षेत्र सोनागिरी मे छुलक, 31 अक्टूबर 78 को सिद्धक्षेत्र नैनागिरी मे एलक और 8 मार्च 80 को सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरी मे मुनि दीक्षा अंगीकार किया था। वह आचार्यश्री के पहले शिष्य है। जैनाचार्य विद्यासागर जी महाराज और नव आचार्य समय सागर जी महाराज के जन्म के साथ ऐसा विचित्र संयोग जुडा है। आचार्य श्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को हुआ था उस दिन शरद पूर्णिमा थी। वही मुनि श्री समय सागर जी की जन्मतिथी 27 अक्टूबर 1958 है इस दिन भी शरद पूर्णिमा थी।
इतिहास ने बदला करवट
सदलगा के संत विद्यासागर महाराज ने 1972 मे आचार्य पद ग्रहण किया था। उन्हें यह दायित्व उनके गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने सौंपा था। बीते 52 सालों मे उन्होंने अपने त्याग, तपस्या और संयमित जीवन से दुनिया को दिगंबर तीर्थकरो के जीवंत स्वरूप का दर्शन कराया। उन्होंने मानव को जिन वाणी का रहस्य बताकर आत्म कल्याण का रास्ता दिखाया वही मूक प्राणियों की रक्षा के लिए कदम उठाकर और वर्तमान के वर्धमान कहलाए।
संतो का अदभुत समागम
आगामी 16 अप्रैल को हुए आचार्य पड़ारोहण समारोह मे शिरकत करने विभिन्न राज्यों मे विराजमान मुनिसंघ लम्बा पद विहार करते हुए कुण्डलपुर पहुंछा था। जानकारी के अनुसार मुनि विरसागर पुणे, सुधासागर आगरा, मुनि श्री प्रमाण सागर जी महराज शिखर जी से पदयात्रा कर सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर पंहुचे थे। इस समारोह मे विद्यासागर जी महाराज के संघ के 9 निर्यापक मुनि, 78 मुनिराज, 152 आर्ययिकाए, 6 एलक, 41 छुलक सहित देशभर के अनुयायी शामिल हुए। यह दूसरा मौका था ज़ब समुचे संघ के दर्शन श्रवको को एक साथ दर्शन करने का मौका मिला. इससे पहले पंचायत कल्याणक महोत्स्व के दौरान सारे मुनि कुण्डलपुर मे जमा हुए थे।
छोटे को पहले बड़े को बाद मे दीक्षा
गृहस्थ जीवन के लिहाज से देखा जाए तो सदलगा के श्री मलप्पा और श्रीमंती के छठी संतान शान्तिनाथ जो वर्तमान मे मुनि श्री समय सागर महाराज ने मुनि दीक्षा 8 मार्च 1980 को ग्रहण किया था। वह आचार्य श्री के पहले शिष्य है। वही आचार्य श्री के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई महावीर जी ने महाराष्ट्र के सिरपुर मे दीक्षा ग्रहण किया था। अब वह उत्कृष्ट सागर के रूप मे धरम प्रभावना बड़ा रहे है।