आचार्य गुरुदेव की छवि आचार्य समय सागर जी में नजर आती,निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज
कुंडलपुर दमोह ।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में परम पूज्य निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा महापुरुष हुए हैं जिनका पूरा जीवन आने वाली पीढ़ी के लिए होता है ।भगवान महावीर के बाद आचार्य कुंद कुंद देव को याद करते हमने ना महावीर को देखा और ना कुंदकुंद देव को देखा वर्तमान में देखा है तो आचार्य विद्यासागर जी को देखा जब आचार्य भगवन की छवि को देखते तो आचार्य भगवन की तुलना आचार्य कुंदकुंद देव से और नवाचार समय सागर जी की तुलना आचार्य श्री से करेंगे वैसे आचार श्री की तुलना अतुलनीय है किसी से नहीं की जा सकती। आचार्य श्री की तुलना किसी से नहीं उनका जीवन अतुल्य है कुछ ऐसे महापुरुष हो जाते हैं जिनके जाने के पश्चात उनकी ख्याति उनका दिग्दर्शन उनके किए कार्य और अधिक बढ़ जाते हैं। उनका जीवन स्वयं के लिए नहीं उनका जीवन मूल रूप से पर के लिए होता है ।जो लक्षण आचार्य कुंदकुंद देव में वह लक्षण घटित होते आचार्य श्री में वर्तमान में जब हम आचार्य समय सागर जी को देखते हैं द्रव्य से भाव से देखने में जो द्रव्य मन वचन द्रव्य काया रहीबात भावों की वह अंतरंग का विषय है ।आचार्य भगवन का औदारिक शरीर आचार्य समय सागर जी महाराज का औदारिक शरीर बिल्कुल वैसा ही मिलता है वैसा ही गौर वर्ण आचार्य भगवन का देखने का जो तरीका उनकी आंखें आचार्य समय सागर जी महाराज की आंखें आचार्य भगवान का बोलने का जो तरीका वही आचार्य समय सागर जी का दिखाई देता है ।आचार्य श्री हमारे दीक्षा गुरु हैं पर हमें आचार्य समय सागर जी ने बढ़ाया वैराग्य के बारे में दृण किया है। शिक्षा में तो पूज्यवर समय सागर जी महाराज ने जब हम घर में थे मोक्ष मार्ग में बढ़ने संबल दिया है मार्ग दिया है शिक्षा दी है। 1994 का रामटेक का वह दृश्य याद आता है हम आचार्य भगवान के पास कभी नहीं रहते थे समय सागर महाराज जी के पास बैठे रहते थे निर्देशों का पालन अक्षरशः करते चले गए। आचार्य श्री की छवि हमें शुरू से मिली थी उनमें ।जब हम आचार्य भगवान को देखते उनकी छवि को देखते उनकी काया को देखते और आचार्य समय सागर जी को देखते उनके बैठने का ढंग को देखते उनके देखने के ढंग को देखते दोनों में ज्यादा अंतर नहीं। जब तक हम यह दृष्टि भीतर नहीं लाएं तब तक समर्पण की वह दृष्टि आएगी नहीं ।मोक्ष मार्ग में प्रगति मोक्ष मार्ग में विकास श्रद्धा समर्पण से आएगा ।आचार्य भगवन नहीं दिख रहे कोई बात नहीं जब हम उनकी छवि देखने की कोशिश करेंगे मूल रूप से जो दिखता वह मायने नहीं रखता जो देखने की कोशिश करते वह महत्वपूर्ण है ।जो चर्म चक्षुओं से दिख रहा उन आंखों से हमें द्रव्य ही नजर आता शरीर ही नजर आता है ।हमारे पंचेन्द्रिय का विषय है हमारे मन का विषय है उनका शरीर उनका है काय से वाणी से वह वैसे ही मिलते ।16 तारीख को आचार्य पदारोहण होने के पश्चात उसके पूर्व में और उसके बाद की अवस्था में बहुत अंतर है। द्रव्य से और भाव से कार्य करने की शैली में भी बहुत अंतर है ।जब वह निर्यापक समय सागर थे उस समय की उनकी शैली और आचार्य बनने के बाद ऐसा लगता साक्षात आचार्य गुरुदेव ही बैठे हो, निर्देश दे रहे हो। हम स्पष्ट बोल रहे कोई लाग लपेट नहीं यह ना समझे महाराज जी ने हमें भेज दिया प्रशंसा कर रहा हूं ।विशुद्धि हमें बढ़ाना आत्म विकास करना परिणामों में उज्जवलता बढ़ाना है आत्म कल्याण के लिए अपने भीतर वह भाव लाकर सीखें जो पहले थे जो लक्षण आचार्य के बताएं वह गुरुदेव में घटित होते हैं। पूज्यवर समय सागर जी की कार्यशैली को देखे कहीं कोई अंतर नजर नहीं आता।