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April 29, 2024
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विश्व कैंसर दिवस पर विशेष,भारत में केसर होना था कैंसर नहींमुनि श्री निरंजन सागर जी

विश्व कैंसर दिवस पर विशेष,भारत में केसर होना था कैंसर नहींमुनि श्री निरंजन सागर जी

कुंडलपुर ।सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में विराजमान मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने विश्व कैंसर दिवस पर कहा आज विश्व कैंसर नाम महामारी से जूझ रहा है, परंतु जब हम हमारी दिनचर्या को देखते हैं तब इसके उत्पादक हम स्वयं ही सिद्ध हो जाते हैं। अधिक लाभ और आकर्षक विज्ञापन के कारण हम इस बीमारी के चपेट में सहज ही जा रहे हैं ।आहार विज्ञान को भूलकर हमने आधुनिक विज्ञान की शरण को स्वीकार कर लिया है ।भारतीय आहार विज्ञान विश्व का अनोखा आहार विज्ञान है ।भारतीय पाककला भी आज विश्व में अपना लोहा मनवा चुकी है। भारतीय कृषि के उत्पाद जिसमें अनाज, दलहन ,मसाले और औषधि आदि हैं। वही आदर्श जीवन का आधार होती थी। पशुपालन और सादगी पूर्ण जीवन एक सुद्रढ़ आरोग्य का आहार था ।परंतु आधुनिकीकरण के चपेट के कारण बढ़ते प्रदूषण के कारण असंयमित जीवनशैली के कारण हमारा आहार विज्ञान इतना बिगड़ गया है कि हम रोगों का चलता फिरता निवास स्थान बन गए हैं। जैसा खाए अन्न वैसा होगा मन ,वैसा होवे तन ,वैसा होवे वतन। हमारी भारतीय पद्धति में कभी भी रात्रि भोजन नहीं किया जाता था। क्योंकि रात्रि भोजन का निषेध ही अहिंसा में प्रवेश का मूल मंत्र है ।मांस से युक्त भोजन कभी नहीं किया जाता है ।यह आसुरी प्रवृत्ति मानी जाती है ।भारत तो स्वयमेव देवभूमि है ।भारत भूमि पर हमेशा महापुरुषों का अवतरण होता रहा है ।उन्हीं महापुरुषों ने इस भारत भूमि को विश्व गुरु बनाया है। हमारा मुख कोई कूड़ा पेटी नहीं है। जिस मुख में राम का ,महावीर का नाम रहता है उस मुख्य में क्या देना है ?इस बात का विचार रहना चाहिए। आज हमने शौक के नाम पर ,आप की बुरी आदतों के नाम पर ,मुख को एक कूड़ा पेटी बना दिया है ।श्रृंगार के नाम पर आने वाले उत्पाद आज उत्पात मचा रहे हैं। उनके द्वारा होने वाले रोगों में प्रमुख स्थान पर कैंसर है ।भारत केसर का उत्पादक था पर आज कैंसर का उत्पादक देश बन कर रह गया है। केसर का अर्थ सुव्यवस्थित जीवन से है ।हमको हमारे जीवन को केमिकल मुक्त बनाना है ।तभी हम इस कैंसर नामक महामारी को दूर कर पाएंगे ।प्राकृतिक खाद से प्राकृतिक स्वाद आता है। जब हमारा खाद बिगड़ गया तो फिर स्वाद कैसे सुधर सकता है। पहले भारत में दूध -घी की नदियां बहती थी ।अर्थात नदियों में स्वच्छ जल बहता था ।आज रक्त की नदियां बह रही हैं ।अर्थात चारों ओर मांस के उत्पाद के लिए निरीह पशुओं को मारा जा रहा है। यह वह भारत है जहां गौ माता कहलाती थी ।आज उस मां का कलेजा भी निकाल कर परोसा जा रहा है ।कैंसर से पुनः केसर की ओर हम सभी आने का प्रयास करें। ओम शांति

संकलन– जयकुमार जैन जलज

 

आदरणीय— सादर प्रकाशन हेतु

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