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April 28, 2024
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उड़ गयी गौरैया  (अतुकांतिका ) पं सुशील शर्मा

  • उड़ गयी गौरैया

(अतुकांतिका )

आज गौरैया दिवस पर

मैंने फिर से

दी गौरैया को आवाज़

नहीं बोली

घर के आंगन मुंडेरों पर

चुपके से फुदक कर

निकल गयी

पंख फुलाए

जैसे गुस्से में बेटी

मुँह फुलाए निकल जाती है

जब मैं उस पर

नहीं देता ध्यान

मैंने फिर पुकारा

गौरैया

गौरैया

क्‍यों नहीं गाती अब तुम

मौसम के गीत

क्‍यों नहीं फुदकती

अब क्यों नहीं किलकती

घर-आंगन में

अब क्यों नहीं टुकुर -टुकुर

देखतीं तुम अपनी भोली आँखों से मुझे

क्यों नहीं मेरे शीशे पर आकर अपने प्रतिबिम्ब को

निहार कर चोंच मारतीं तुम

गौरैया गुस्से से बोली

क्या है क्यों चिल्ला रहे हो

क्या आज गौरैया दिवस है

इसलिए आई मेरी याद

बाकी के दिन

निकल जाते हो सामने से देखते भी नहीं

आज लिखनी होगी मुझ पर कविता

इसलिए चिल्ला रहे हो

बोलो कहाँ रहूँ

न तुमने पेड़ छोड़े

न घर में कोई स्थान जहाँ मैं

बनाऊँ अपना घोंसला

मत बुलाओ मुझे

न जंगल छोड़े न जल छोड़ा

खेतों में जहर बोया

मोबाइल टावर के यमदूत ने

ली हमारी जान

कंक्रीटों के जंगल में

किया बाधित हमारे जीवन को

न दाना है न पानी है

कैसे बचाऊं अपना अस्तित्व

कविता लिखने से

गोरैया नहीं बचेगी

न ही गौरैया दिवस पर

भाषण बचा सकते हैं उसका अस्तित्व

बचा सकोगे मुझे

इतना कह कर

गुस्से में फुर्र से उड़ गयी

गौरैया

मुझे लगा जैसे

उड़ गई मेरी बेटी

छोड़ कर यक्ष प्रश्न अपने अस्तित्व के।

 

सुशील शर्मा

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