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May 5, 2024
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जबलपुर,न्यायपालिका के गलियारों की चर्चा , न्यायाधीश अपने प्रभाव के चलते इन नामों को निश्चित कराने में हुए सफल

जबलपुर । न्यायपालिका को संविधान का संरक्षक और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक माना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के पास न केवल कानून के लिये अंतिम सहायक प्राधिकार हैं, बल्कि ये हमारे लोकतंत्र के उच्चतम आदर्शों के रक्षक भी माने जाते हैं।

देश की उच्च अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम में देश के मुख्य न्यायाधीश के अलावा शीर्ष अदालत के अन्य वरिष्ठतम जज शामिल होते हैं। उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम में संबद्ध न्यायालय के वरिष्ठतम जज शामिल होते हैं।

भारत दुनिया के कुछ उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ न्यायाधीशों के कॉलेजियम तंत्र के माध्यम से उच्च न्यायापालिका में न्यायिक नियुक्तियाँ की जाती हैं और कोई उनको चुनौती नहीं दे सकता। यहाँ यह जान लेना भी ज़रूरी है कि कॉलेजियम का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है और इसका जन्म सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले से हुआ है। माना जाता है न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका के बढ़ते हस्तक्षेप के बाद कॉलेजियम प्रणाली सामने आई,कॉलेजियम ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने और इसकी गारंटी देने के एक साधन के रूप में काम करना शुरू किया ,हाई कोर्ट मुख्य पीठ जबलपुर, ग्वालियर एवं इंदौर में न्यायाधीश के रिक्त पड़े पदों को भरने कार्यवाही शुरू हो गई है. सूत्रों की माने तो लगभग सारे नाम तय किए जा चुके हैं जिसमें एक अन्य राज्य के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश, वर्तमान मुख्य न्यायधीश पंजाब एवं कोलिजियम के दो जज की प्रमुख भूमिका है जिसके चलते कुछ रिश्तेदारों के और नज़दीकीयों के नाम फ़ाइनल हुए हैं जिसमें मुख्यतः जबलपुर से स्वप्निल गांगुली, अमित सेठ, प्रवीण दुबे,पुष्पेंद्र यादव,कनक लता गहरवार,हरप्रीत रूपराह एवं अमलपुष्प श्रोती हैं इसी प्रकार ग्वालियर से सुशील चतुर्वेदी और इंदौर से विनय सराफ भी नाम फ़ाइनल हुए हैं

न्यायपालिका के गलियारों की चर्चा है कि उक्त न्यायधीश गण अपने प्रभाव के चलते इन नामों को निश्चित कराने में सफल हुए हैं ज़्यादातर नाम रिश्तेदारों और स्व भाषियों के हैं जिन पर अंतिम मुहर सर्वोच्च न्यायालय की लगनी है

चर्चा है कि इसी वर्ष के मध्य तक इन नामों पर स्वीकृति होना तय है

न्यायाधीशों के लिये उनकी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा बेहद महत्त्वपूर्ण है तथा इस पर यदि जरा सी भी आँच आती है या इसे किसी प्रकार की ठेस लगती है तो उनके लिये स्वतंत्र रहकर काम करना मुश्किल हो जाएगा। यह आशंका भी जताई जाती है कि इसे संदर्भ से अलग जाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है और अदालत में लाभ उठाने के लिये इसका इस्तेमाल किया जा सकता है या किसी विशेष मामले में न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए जा सकते हैं। जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण जैसे महत्त्वपूर्ण मामलों को न्यायिक परिवार के सीमित दायरे से बाहर निकालकर उसमें आम लोगों को भागीदार बनाने के लिये कॉलेजियम व्यवस्था की निर्णय प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता लाने की बेहद आवश्यकता है।

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