पत्ते से बिछे लोग
साथ लिए छुद्रता।
छोड़ी सब भद्रता।
जात-जात कर रहे
माँग रहे कद्रता।
हैं चुनाव आसपास।
जगी-जगी मन की आस।
रामचरित मानस पर
बोल रहे खास -खास।
शूद्र-शूद्र कर रहे।
मनस मैल झर रहे।
गूगल के अर्थ बोल
कपट बैर धर रहे।
भारत को तोड़ रहे।
घातों को जोड़ रहे।
विष वमन कर कर के
जन मानस मोड़ रहे।।
तुलसी रैदास एक।
सबके हैं वचन नेक।
मानवता धर्म हो
हर मन बसे विवेक।
आँचल में छुपे लोग।
खुद से ही डरे लोग।
उँगलियाँ उठाते हैं
पत्ते से बिछे लोग।
सुशील शर्मा