ओम् नमः शिवाय। सनातन धर्म के अनुसार श्रावण का महीना बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है। बारिश की फुहार के साथ ही चातुर्मास के महीने की शुरुआत हो जाती है। इस महीने भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है, इसलिए इस श्रावण मास के रूप में भी जाना जाता है। पंचांग के अनुसार सावन का महीना साल का पांचवां माह होता है। इस माह में सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु चार महीनों के लिए क्षीर सागर में माता लक्ष्मी के साथ योग निद्रा में चले जाते हैं, ऐसे में सृष्टि की जिम्मेदारी भगवान शिव के कंधों पर आ जाती है।
श्रावण के महीने में सोमवार के दिन का अत्यधिक महत्व होता है। कहते हैं कि इस समय प्रत्येक सोमवार ओर कुछ लोग तो पूरे श्रावण का व्रत करते है। जगह-जगह रुद्राभिषेक किया जाता है, दूध और जल,दही,घी,शहद, शक्कर, आदि भगवान पर चढ़ाई जाती है। जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण करते हैं।
श्रावण मास कब तक है
सनातन धर्म में बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस वर सावन का महीना 14 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त को समाप्त होगा। जिसमें से कुल 4 सोमवार होंगे और पहला सोमवार 18 जुलाई को होगा।
श्रावण मास का पहला दिन – 14 जुलाई, गुरुवार
श्रावण मास का पहला व्रत – 18 जुलाई, सोमवार
श्रावण मास का दूसरा व्रत – 25 जुलाई, सोमवार
श्रावण मास का तीसरा व्रत – 1 अगस्त, सोमवार
श्रावण मास का चौथा व्रत – 8 अगस्त, सोमवार
श्रावण मास का आखिरी दिन – 12 अगस्त, शुक्रवार
सावन सोमवार के व्रतों के अलावा भक्तगण मंगलवार को भी उपवास रखते हैं। जो देवी पार्वती को समर्पित होता है, जिसे मंगल गौरी का व्रत कहा जाता है।
श्रावण मास में माता पार्वती ने तपस्या करके भोलेनाथ को प्रसन्न किया था और उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था। इसलिए भी भगवान भोले नाथ को यह मास अत्यधिक प्रिय है. ये भी माना जाता है कि भोलेनाथ सावन मास में ही धरती पर अवतरित हुए थे और अपनी ससुराल गए थे। इसके अलावा धार्मिक मान्यताएं ये भी कहती हैं कि श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें से निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया था और इसकी जलन को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था, इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान है।
श्रावण मास की पूजा विधि
भक्तों को स्नान करके, साफ कपड़े पहनकर, मंदिर जाने और सावन के महीने में शिव पार्वती की पूजा अर्चना करने का नियम बनाना पड़ता है। भगवान शिव को फूल, दूध, गंगाजल, पंचामृत, बेलपत्र, धतूरा और सफेद मिठाई अवश्य चढ़ानी चाहिए। साथ ही एक दिया जलाना चाहिए और सावन कथा का पाठ करना चाहिए जिससे भोले अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। शिव की सच्चे मन से पूजा करने पर हर मनोकामना पूरी होती है। भक्तों के दुखों का निवारण होता है और सुख शांति का संचार होता है।
भोलेनाथ को ये है अत्यन्त प्रिय
शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद शिवलिंग पर ये पदार्थ चढ़ा दें, ताजी बेलपत्र, धतुरे के ताजा फल, नारियल, शहद, घी, चीनी, ईत्र, चंदन, केसर, भांग इन सभी चीजों को एक-एक चीजों को एक-एक करके अर्पित करें। शिव महापुराण में बताया गया है उक्त चीजें भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होती है, जिससे वे अति प्रसन्न होकर समस्याएं दूर होने लगते हैं।
शिवलिंग पर क्या चढ़ाये
शिव मंत्रों का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल व बेलपत्र, धतुरा चढ़ाने से व्यक्ति का स्वभाव शांत और आचरण प्रेममय होता है। शिवजी को शहद चढ़ाने से वाणी में मिठास, दूध चढ़ाने से उत्तम स्वास्थ्य, दही चढ़ाने से स्वभाव में गंभीरता, गाय का घी अर्पित करने से शरीर में शक्ति का संचार, चंदन चढ़ाने से व्यक्तित्व आकर्षक, समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है।
कावड़ यात्रा का महत्व
पूजय गुरुदेव के कथानुसार बताया गया है कि गंगोत्री का जल रामेश्वरम में चढ़ाकर जो पुण्य फल की प्राप्ति होती है वह हमें मुंडारा से जल भरकर भगवान गुरुरत्नेश्वर महादेव का अभिषेक करने पर अभीष्ट पुण्य की प्राप्ति होती है। नर्मदा जल शिवलिंग पर चढ़ाने से भाग का उदय होता है एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पण्डित दिलीप तिवारी शास्त्री, दिघोरी,सिवनी