पुण्य सलिला माँ नर्मदे(रेवार्चन )
(14 ,12 मात्राएँ ,सम चरण तुकांत )डॉ सुशील शर्मा
माँ नर्मदे पुण्य सलिला ,
आत्म रूप विधान हो।
नादमय ओंकारमय ,
स्वस्तिमय संधान हो।
शिव स्वेद से उत्पन्न तुम ,
पुण्य धन्या शिव सुता।
अमरकंटक गोमुखी तुम ,
धन्य धारा मृदुलता।
सतपुड़ा की मेखला में ,
बहे जीवन दायनी।
हे रूद्रांगी सम्भूता ,
योगिनी मन गामिनी।
फेनिल अमृतमयी धारा ,
सर्व शोक विनाशनी।
पुष्परेखा तमस हरणी ,
मातु मोक्ष प्रकाशनी।
हे नर्मदा हे त्रिकूटा ,
रेवा विपापा मोक्षणी।
आशुतोषी माँ नर्मदा ,
कल्प सुपोषित तीक्ष्णी।
नीलांबरा रत्नाकरी ,
मनप्रभा द्रुत गामिनी
सर्वा पाप विनिर्मुक्ता,
नीलमणि द्युति दामिनी।
धन्यधारा माँ नर्मदे ,
जगत का कल्याण हो।
नीर ले अविराम बहती ,
सिंधु तक निर्याण हो।
चरण में तेरा पड़ा मैं ,
माँ न मुझे विसारिये।
चरण रज तन मन लगा लूँ ,
माँ रेवा उबारिये।
*माँ नर्मदा के पावन प्रकटोत्सव “नर्मदा जंयती” की हार्दिक शुभकामनाएं।*