आज विश्व पितृ दिवस है ।
पिता एक किरदार …एक दायित्व…एक कवच…आँधियों से झंझावातो से जूझ कर रक्षा करता एक बरगद …वक्त की मार से बचाता एक कवच…जिन्दगी की राह पर उंगली थामे कभी सदृश्य और प्रायः अदृश्य हाथ …एक चट्टान जिससे भावना के श्रोत निर्झर बहता हो …विडंबना यह है की जनक तो सभी के हैं पर पिता कितनो पर हैं …कितनो ने महसूस किया है पिता का अहसास अपने आस पास ?…पिता एक अहसास है उस अहसास को अनुभूति से प्रणाम !”—–
एक जनक से पिता बनना जीवन की कठिन यात्रा है।
पिता तुम्हारा ना होना
जैसे मुख्यद्वार पर
साथिये का ना होना।
ना होना आँगन में
पुराने बरगद का।
ना उगना माँ के माथे
पर गोल
नारंगी सूरज का।
ना होना मधुर संगीत
माँ की
सतरंगी चूडियों का।
मुडेर पर पंछियों का
द्वार पर गैया का ।
घर के ओसरे
में दिये का ।
पुष्प में खुशबू का
ना होना ।
हे पिता
तुम्हारा ना होना। मतलब इस सृष्टि
में भगवान का ना होना।