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April 27, 2024
ADITI NEWS
सामाजिक

जनजातीय बाचा गाँव की महिलाओं ने बनाया ऊर्जा समृद्ध गाँव,नई टेक्नालाजी अपनाने में बढाया कदम

मध्यप्रदेश को सौर ऊर्जा के उपयोग और उत्पादन में आत्म-निर्भर बनाने में जनजातीय गाँवों ने स्व-प्रेरणा से कदम बढ़ाकर गाँवों में परिवर्तन लाने की शुरूआत कर दी है। राज्य सरकार की पहल से जनजातीय परिवार अपने हितों के प्रति जागरूक हो गये हैं। मध्यप्रदेश को आत्म-निर्भर बनाने की मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की सोच को बाचा गाँव ने जमीन पर उतार दि या।

जनजातीय बहुल बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी तहसील के बाचा गाँव के गोंड जनजाति परिवरों ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे अपनी खुशहाली के लिये नई टेक्नालाजी को अपनाने में पीछे नहीं है। बाचा गाँव सौर ऊर्जा समृद्ध गाँव के रूप में देश भर में प्रतिष्ठा अर्जित कर चुका है।

“वर्षों से ऊर्जा की कमी की पीड़ा झेलते-झेलते आख्रिरकार हम ऊर्जा-सम्पन्न बन गये। हमारा गाँव बाचा देश का पहला सौर-ऊर्जा आत्म-निर्भर गाँव बन गया है। यह बताते हुए अनिल उइके बेहद उत्साहित हो जाते हैं। वे आदिवासी युवा हैं और बाचा गाँव के सौर-ऊर्जा दूत भी हैं।

“हमारे गाँव के सभी 75 घरों में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों का उपयोग हो रहा है। यह बताते हुए खदारा ग्राम पंचायत के पंच शरद सिरसाम कहते हैं कि हमने बाचा को ऊर्जा की जरूरत में पूरी तरह से आत्म-निर्भर गाँव बनाने का संकल्प लिया है। आईआईटी बाम्बे और ओएनजीसी ने मिलकर बाचा को तीन साल पहले ही इस काम के लिये चुना था। इतने कम वक्त में ही हम बदलाव की तस्वीर देख रहे हैं। “

धुएँ से मुक्ति

बाचा के सभी 75 घरों में अब सौर-ऊर्जा पैनल लग गये हैं। सबके पास सौर-ऊर्जा भंडारण करने वाली बैटरी, सौर-ऊर्जा संचालित रसोई है। इंडक्शन चूल्हे का उपयोग करते हुए महिलाओं ने खुद को प्रौद्योगिकी के अनुकूल ढाल लिया है। पंच शांतिबाई उइके बताती हैं कि “सालों से हमारे परिवार मिट्टी के चूल्हों का इस्तेमाल कर रहे थे। आग जलाना, आँखों में जलन, घना धुआं और उससे खाँसी होना आम बात थी। अब हम इंडक्शन स्टोव के उपयोग के आदी हो चुके हैं। बड़ी आसानी से इस पर खाना बना सकते हैं। दूध गर्म करना, चाय बनाना, दाल-चावल, सब्जी बनाना बहुत आसान हो गया है। हालांकि हमारे पास एलपीजी गैस है, लेकिन इसका उपयोग अब कभी-कभार हो रहा है। श्रीमती राधा कुमरे बताती है कि “पारंपरिक चूल्हा वास्तव में एक तरह से समस्या ही था। मैं अब इंडक्शन स्टोव के साथ सहज हूँ, जिसे किसी भी समय उपयोग ला सकते हैं। “

वन धन पर घटता दबाव

वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हीरालाल उइके कहते हैं – “सूर्य-ऊर्जा के दोहन के प्रभाव को गाँव से लगे जंगल पर कम होते जैविक दबाव से स्पष्ट मापा जा सकता है। वन सुरक्षा समिति के प्राथमिक कार्यों का हवाला देते हुए वे बताते हैं कि सभी 12 सदस्य वन संपदा की रक्षा करते हैं। दिन-रात सतर्क रहते हैं ताकि कोई भी जंगल को नुकसान न पहुँचाए। हमें अवैध पेड़-कटाई और वन्य-जीव शिकार जैसी गतिविधियों के बारे में हर समय सचेत रहना पड़ता है। इससे पहले, महिलाएँ ईंधन की लकड़ी के लिए प्राकृतिक रूप से गिरी हुई टहनियों को इकट्ठा करने के लिए नियमित रूप से जंगल जाती थीं। अब यह रुक गया है और हमें काफी राहत मिली है। “

“मैं इस गाँव का सबसे पुराना मूल निवासी हूँ। मैंने करीब से देखा है कि चीजें कैसे बदली हैं। परिवार की आजीविका के लिए तीन एकड़ की खेती पर निर्भर करीब 80 साल के शेखलाल कवड़े याद करते हैं कि कैसे बाचा में कोई सड़क नहीं थी। सफाई नहीं थी। बिजली नहीं थी। आज गाँव पूरी तरह से बदल गया है। मैं खुश हूँ कि अपने जीवनकाल में ही बदलाव का आनंद मिल रहा है। “

बाचा गाँव की सामूहिक भावना को साझा करते हुए, अनिल उइके का कहना है कि बिजली के बिल कम होने से हर कोई खुश है। कारण यह है कि बिजली की खपत में भारी कमी आई है। सौर ऊर्जा संचालित एलईडी बल्ब के साथ घरों की ऊर्जा आवश्यकताओं को सौर ऊर्जा से आसानी से पूरा किया जा रहा है।

प्रेरणा-स्त्रोत

सरपंच राजेंद्र कवड़े बताते हैं कि बाचा ने आसपास के गाँवों को प्रेरित किया है। खदारा और केवलझिर गाँव के आसपास के क्षेत्रों में भी रुचि पैदा हुई है। केवलझिर बाचा से सिर्फ 1.5 किमी दूर है, जबकि खदारा 2 किमी है। “मुझे लगता है कि बाचा ने मुझे जिले में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान और सम्मान दिलाया है। जहाँ भी जाता हूँ लोग सम्मान देते हैं।” इसी तरह की भावना शाहपुर गवर्नमेंट कॉलेज के बीएससी अंतिम वर्ष के छात्र अरुण कावड़े की भी है। उनका कॉलेज बाचा से 15 किलोमीटर दूर है। वे कहते है कि “हम धीरे-धीरे सौर ऊर्जा पर पूरी तरह निर्भर हो रहे है क्योंकि ग्रिड द्वारा आपूर्ति की गई बिजली महंगी हो रही है।” दूसरा बड़ा कारण यह है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है। सामाजिक व्यवहार में बदलाव

जनपद पंचायत घोड़ाडोंगरी के सदस्य रूमी दल्लू सिंह धुर्वे बताते हैं कि बाचा के सामाजिक व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन साफ दिखाई दे रहा है। उदाहरण के लिए, ग्रामीणों को तकनीकी अपनाने की झिझक नहीं रही। वे सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक नजरिया अपना रहे हैं।

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