मुझे लिखना ही होगा
(अतुकांतिका ,विश्व कविता दिवस पर)
हर कोई लिख रहा है
वही जो कहा जा चुका है
बोला जा चुका है ,
लिखा जा चुका है।
मैं कुछ ऐसा लिखना चाहता हूँ
जो इस पल तक
लिखा न गया हो
जिसका भाव अनछुआ हो
जो कल्पनातीत हो
जिसे कोई भी भाषा
कोई भी शब्द
अर्थ न दे पाएँ हों
जो आज तक प्रकृति के
आयामों से बहुत दूर है
जिसका कोई व्याकरण न हो
कोई नाद कोई आवाज़ न हो।
मैं लिखना चाहता हूँ
उस हँसी के भाव
जो गगन भेदती हो
उस चीख के अर्थ
जो मृत्युशिला से टकरा
कर लौटी हो
मैं उस ईश्वर को लिखना चाहता हूँ
जो आज तक अपरिभाषित है।
हो सकता है इसमें सदियाँ लग जाएँ
या कितने ही जन्म
पर मुझे ये लिखना है
लिखना ही होगा।
सुशील शर्मा