28.1 C
Bhopal
May 5, 2024
ADITI NEWS
सामाजिक

वीर बाल दिवस, पर जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत की(लघु नाटिका )

वीर बाल दिवस, पर जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत की(लघु नाटिका )

कुछ कृत्य और कार्य इतने गहन होते हैं कि वे इतिहास की दिशा ही बदल देते हैं! ऐसी ही एक शहादत है सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे पुत्रों की! युवा और मासूम लड़के, साहिबजादा (राजकुमार) जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह 26 दिसंबर, 1705 को शहीद हो गए, जब सरहिंद के मुगल गवर्नर वजीर खान ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी।
गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी के सबसे छोटे पुत्र, साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा बाबा फतेह सिंह जी का जन्म आनंदपुर साहिब में हुआ था। दादी माता गुज्जर कौर जी विशेष रूप से युवा साहिबजादों के करीब थीं। जब गुरु जी का परिवार आनंदपुर साहिब से निकाला गया, तो माता जी ने उन दोनों की जिम्मेदारी संभाली थी।
प्रथम दृश्य
(श्री आनंदपुर पुर साहिब में गुरुबानी का पाठ )

सेवक -गुरूजी शाही दरबार से कोई सन्देश वाहक आया है।

गुरुगोविंद -उसे यहाँ ले आओ।

(सेवक जाता है औरंगजेब का दूत अंदर आता है गुरु गोविन्द सिंह जी को प्रणाम करता है।)

गुरु गोविन्द सिंह जी – कहो दूत क्या संदेशा है ?

दूत -साहबे आलम ने आपको सन्देश भेजा है।

गुरुगोविंद सिंह का सेवक दूत से सन्देश लेकर पढता है। पत्र में लिखा था कि “, ‘मैं कुरान की कसम खाता हूं, अगर आप आनंदपुर का किला खाली कर दें, तो बिना किसी रोक-टोक के यहां जाने दूंगा.”
गुरुगोविंद के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

गुरु गोविन्द सिंह -तुम्हारे साहिबे आलम पर विश्वास करना कठिन है फिर भी हम एक बार विश्वास करके देखते हैं।
(दूत जाता है )
औरंगजेब अपनी बात से मुकर जाता है और आनंदपुर साहेब पर आक्रमण कर देता है। मुगलों और छोटी पहाड़ी रियासतों की संयुक्त सेना ने गुरु गोबिंद सिंह, उनके परिवार और अनुयायियों को आनंदपुर साहिब किले से बाहर निकालने के लिए कपटपूर्ण छल का इस्तेमाल किया और फिर उन्हें नष्ट करने की कोशिश की। वज़ीर खान के अधीन इन सेनाओं ने गुरु को आनंदपुर साहिब से सुरक्षित मार्ग देने का वादा किया, लेकिन जब वे बाहर आये तो भारी संख्या में उन पर हमला कर दिया। सिखों की मुख्य टुकड़ी ने चमकौर में अंतिम व्यक्ति तक लड़ाई लड़ी, जहां गुरु गोबिंद सिंह ने मुट्ठी भर सिखों के साथ रक्षात्मक स्थिति संभाली। गुरु के बड़े बेटे, साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह चमकौर की लड़ाई में लड़ते हुए शहीद हो गए। घटनाओं के दुखद मोड़ में गुरु ने अपने चार बेटों और अपनी माँ को खो दिया, लेकिन अपने समर्पित अनुयायियों की बहादुरी और बलिदान से उन्हें बचा लिया गया।

दूसरा दृश्य

सेवक -अल्लाह हो अकबर ,हमारी फतह हुई जनाब। गोविन्द सिंह के दो पुत्र मारे गए ,उनकी माँ और दो छोटे बेटों को बंदी बना लिया गया है।

वजीर खान -कल उन्हें मेरे सामने पेश किया जाये।
(अगले दिन इन्‍हें नवाब वजीर खान की कचहरी में पेश किया गया)

वजीर खान -वल्लाह ,कितने प्यारे बच्चे हैं। बच्चो तुम इस्लाम धर्म अपना लो ,हम तुम्हें तुम्हारी इस बूढ़ी दादी माँ और तुम्हारे पिता की जान बख्श देंगे।
तुम्हें इतना ईनाम देंगे की तुम्हारी सात पुस्तें आराम की जिंदगी जियेंगी।

जोरावर सिंह -वजीर शाह हम बच्चे जरूर हैं लेकिन शेर के बच्चे हैं ,हम किसी भी स्थिति में अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे ,चाहे तुम कुछ भी कर लो।

फ़तेह सिंह -वाहे गुरु का खालसा वाहे गुरु की फ़तेह।

वजीर शाह -इन तीनों को सजा देनी पड़ेगी ,ये बगावत कर रहें हैं इन्हें रात भर ठंडी मीनार पर रखो सुबह तक होश ठिकाने आ जायेंगे।

वजीर खान ने युवा राजकुमारों को सबसे खराब यातना और धमकी के अधीन रखा, उसने उन्हें और उनकी दादी को एक ठंडे बुर्ज (एक ठंडी मीनार) में रखा, जो रात की ठंडी हवा को पकड़ने के लिए बनाया गया था। रात भर ठंड के मौसम में रहने के बाद भी उन युवा साहबजादों का दृढ़ निश्चय अटल रहा।
तीसरा दृश्य

अगले दिन उन दो मासूम बच्चों को वजीर खान की कचहरी में प्रस्तुत किया गया।

वजीर खान -क्यों अब अक्ल ठिकाने आई शेर के बच्चो !बोलो !इस्लाम स्वीकार करते हो ?

फ़तेह सिंह -हरगिज नहीं, हम गुरुनानक के वंशज हैं मर जायेंगे पर अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे।

जोरावर सिंह -वजीर खान एक सलाह है तुम इस्लाम छोड़ कर सिख धर्म अपना लो ,तुम्हारे सारे पाप धुल जायेंगे।

वजीर खान -जुबान बंद कर अपनी ,लगता है तुझे मौत बुला रही है।

फ़तेह सिंह -मौत का डर किसे दिखा रहा है ,हम अपने धर्म के लिए सौ बार कुर्बान हैं।

वजीर खान -ये दोनों मुगल साम्राज्य के विरोधी हैं ये बागी हैं इन्हें कल दीवार में जिन्दा चुनवा दिया जाए।

(दोनों बच्चे वाहे गुरु का खालसा वाहे गुरु की फ़तेह का नारा लगाते है। )
दृश्य चार

दोनों बच्चों को लाया जाता है। मिस्त्री दोनों बच्चों के चारों ओर दीवार चुनते हैं ,जब दीवार उन के सीने तक आ जाती है तबी वजीर खान पुनः उनसे इस्लाम स्वीकार करने की बात कहता है।

वजीर खान -अभी भी समय है ,बोलो इस्लाम स्वीकार है ,जान बख्श दी जाएगी ,बहुत सारी दौलत से मालामाल कर दिए जाओगे।

फ़तेह सिंह -तुम लाख कोशिश कर लो वजीर खान ,हम सच्चे सिख हैं अपनी जान की परवाह नहीं हैं ,हम कभी भी इस्लाम स्वीकार नहीं करेंगे।

जोरावर सिंह -ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥

दोनों साहबजादे बेहोश हो जाते हैं , बच्चों के दम तोड़ने से पहले ही दीवार तोड़ दी गई और उसके बाद सबसे भयानक कृत्य किया गया! वजीर खान ने जल्लादों को युवा साहबजादों के गला काटने का आदेश दिया। शहादत की खबर सुनते ही उनकी दादी माता गुर्जर कौर ने भी अंतिम सांस ली।

पटाक्षेप

लेखक-सुशील शर्मा

Aditi News

Related posts