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April 30, 2024
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मुख्यता किसकी? सलाह की अथवा सहयोग की,मुनि श्री निरंजनसागर जी

मुख्यता किसकी? सलाह की अथवा सहयोग की,मुनि श्री निरंजनसागर जी

कुंडलपुर। साइंस ऑफ लिविंग के आज के इस सत्र में हम एक ऐसे विषय से आपको अवगत कराने का प्रयास कर रहे हैं। जिसका हम सभी को हमारे जीवन में भिन्न-भिन्न तरीकों से सामना करना पड़ता है ।एक बहुत ही नकारात्मक दृष्टिकोण सामान्यतः देखने को मिलता है ।वह है किसी की भी ना सुनना और अपने हिसाब से कार्य करना। अगर कोई कुछ कहना भी चाहे तो उसे तुरंत कह देना सलाह नहीं सहयोग दीजिए ।अर्थात कार्य तो चाहे गलत हो या सही पर करेंगे वही जो हम चाहते हैं और अगर आप इसमें कुछ करना चाहते हो तो भी हमारे हिसाब से ही करो। आप अपने दिमाग का इस्तेमाल तो बिल्कुल भी मत करो ।यहां तक लोगों को कहते सुना है कि कृपया यहां ज्ञान ना बाटे क्योंकि यहां सभी ज्ञानी है ।इस तरह की बातें आपकी नकारात्मकता का स्पष्ट प्रमाण है ।आज हम इसके सकारात्मक पहलुओं तक पहुंचने का प्रयास करेंगे ।इस तरह के प्रसंग पर आपका यह कहना उचित होगा कि आप सभी की हमें सहयोगात्मक सलाह अपेक्षित है ,और आप सभी का हम सलाहात्मक सहयोग चाहते हैं। ।अर्थात सलाह और सहयोग दोनों ही महत्वपूर्ण है, और उससे भी महत्वपूर्ण है उसकी उपयोगिता ।कई लोग कहते हैं कि पहले बीज आया अथवा वृक्ष। जिस प्रकार यह प्रश्न भी हमेशा से ही शाश्वत है परंतु बीज की भी अपनी उपयोगिता है और वृक्ष की भी अपनी उपयोगिता है। ठीक उसी प्रकार सलाह और सहयोग दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है ।एक अच्छी सलाह से सहयोग भी दिया जा सकता है और अच्छे सहयोग से सलाह भी दी जा सकती है। आचार्य कहते हैं विधि द्रव्य दातृ पात्र विशेष:तत विशेष । अर्थात हर उस सलाह और सहयोग को कार्यकारी बनाता है ,महत्वपूर्ण बनाता है, उपयोगी बनाता है उसकी विधि विशेष ,उसकी द्रव्य विशेष, उसका दाता विशेष और उसका पात्र विशेष ।विधि अर्थात प्रक्रिया (प्रोसेस )द्रव्य अर्थात सामग्री (कंटेंट )दातृ अर्थात दाता (देने वाला) (गिवर )पात्र अर्थात ग्रहण करने वाला (रिसीवर)। आपका सलाहकार कौन है यह बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि दुर्योधन शकुनि से सलाह लेता था और अर्जुन श्रीकृष्ण से ।आपके सहयोगी कौन हैं यह भी बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि राम के भाई लक्ष्मण ने सहयोग दिया तो राम को विजयश्री प्राप्त हुई और रावण के भाई विभीषण ने असहयोग किया तो रावण को मृत्यु श्री प्राप्त हुई ।जब हम किसी से कुछ भी सहयोग चाहते हैं तो आपको आपके सहयोगी की कुछ सलाह भी मानना पड़ेगी। आप देखेंगे कि आप जब उसकी सलाह मानते हैं तो उसका भी बहु मान रह जाता है और उसका आपके प्रति समर्पण भी बढ़ जाता है।एक मजबूत संगठन की नींव है प्रत्येक सहयोगी को साथ लेकर चलना। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता अनुसार कार्य का विभाजन कर देने से वह अपने कार्य के संपादन में व्यस्त हो जाता है ।कार्यकर्ता की व्यस्तता ही संगठन का प्राण है ।जिससे संगठन मजबूत होता चला जाता है। जब आपके पास उच्च श्रेणी के सलाहकार एवं सहयोगी होंगे तब आपका संगठन भी स्वयमेव उत्कृष्टता को प्राप्त हो जाएगा। दीपक मिट्टी का है या सोने का यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि वह कितनी रोशनी दे रहा यह महत्वपूर्ण है ।इसी प्रकार आपके सलाहकार एवं सहयोगी कैसे हैं वह आपका कितना सहयोग करते हैं ।किस स्तर की आपको सलाह देते हैं यह महत्वपूर्ण है। चाहे वह आपसे उम्र में ,वैभव में या पद में छोटा ही क्यों ना हो यह महत्वपूर्ण नहीं है। कहावत है डूबते को तिनके का सहारा अर्थात जो व्यक्ति पतन को प्राप्त हो रहा हूं उसे आपका जरा सा भी हंस्तावलम्वन सहारा दे सकता है ।यही सही मानवता है ।मरे हुए को मारना कोई महान कार्य नहीं है ।महानता तो तब है जब कोई मरे हुए को जीवन प्रदान कर दें। किसी विद्वान ने कहा है सारे साथी काम के सबका अपना मोल ,जो संकट में साथ दें वह सबसे अनमोल।

जयकुमार जैन जलज

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