श्री राम जी ने अन्याय का साथ नहीं दिया तो हम कैसे दे सकते हैं-मुनि श्री निरंजन सागर महाराज
कुंडलपुर। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में विराजमान पूज्य मुनि श्री निरंजनसागर जी महाराज ने सम्मेदशिखर पर बोलते हुए कहा श्रीरामजी ने एक ऐसा अनूठा आदर्श प्रस्तुत किया है जो मर्यादा कहलाने लगा और स्वयं श्रीराम जी मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पहचाने जाने लगे।अन्याय को सहन नहीं करना एवं न्याय के लिए अडिग रहना और न्याय के लिए पूर्ण पुरुषार्थ करना।यही संदेश श्री राम जी के जीवन से हम सभी के लिए मिलता है। रावण ने छल पूर्वक सीता जी का हरण किया था परंतु श्री रामजी ने हार नहीं मानी। पहले उन्होंने रावण के पास दूत आदि को भेजकर उसे प्रेम पूर्वक समझाया। परंतु जब रावण को प्रेम की भाषा समझ में ना आई तब श्रीराम जी ने युद्ध का बिगुल बजा दिया। फिर ऐसा महायुद्ध धर्म युद्ध हुआ और श्रीराम जी विजय श्री को प्राप्त हुए ।श्रीराम जी प्रारंभ में ही पुरुषार्थ न करते, अन्याय के सामने घुटने टेक देते और हार मान कर बैठ जाते तो क्या आज धर्म की स्थापना कर पाते, क्या दुनिया के सामने आदर्श प्रस्तुत कर पाते ।जब दुनिया के आराध्य श्रीराम जी ने अन्याय का साथ नहीं दिया तो हम कैसे दे सकते हैं। शिखरजी के विषय में हम अन्याय नहीं होने देंगे और ना ही अन्याय सहन कर सकते हैं। तीर्थ स्थल आत्मा के रंजन का स्थान होता है। पर्यटन स्थल मन के रंजन का स्थान होता है।आत्मा के रंजन के स्थान को मन के रंजन का स्थान नहीं बनने देंगे। शिखर जी शाश्वत तीर्थ था, शाश्वत तीर्थ है, और रहेगा। तीर्थस्थल और पर्यटनस्थल एक नहीं हो सकते जितना अंतर अमृत और विष में होता है उतना ही अंतर तीर्थस्थल में और पर्यटनस्थल में होता है। दोनों को एक समान दृष्टि से देखने वाला बुद्धिमान तो हो ही नहीं सकता ।जैन आचार्य ने धर्म को भी पुरुषार्थ कहा है। बगैर पुरुषार्थ के धर्म और धर्म क्षेत्रों की सुरक्षा संभव हो नही हो सकती है। पुरुषार्थ भी पुरुष ही कर सकता है नपुंसक कभी पुरुषार्थ नही करता क्योंकि वह पुरुषार्थ के अयोग्य रहता है।यह सभी को अपनी भूमिका को समझाते हुए पुरुषार्थ करना है यही हमारा धर्म है। *हम जैनों का एक ही नारा सम्मेद शिखरजी है हमारा*