35.1 C
Bhopal
May 6, 2024
ADITI NEWS
धर्म

कुंडलपुर गुरु हमें बदलना सिखाते हैं ,ना कि बदला लेना,मुनि श्री निरंजन सागर जी

गुरु हमें बदलना सिखाते हैं ,ना कि बदला लेना,मुनि श्री निरंजन सागर जी

कुंडलपुर ।साइंस ऑफ लिविंग के इस सत्र में हम सभी गुरु की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर चर्चा करने का प्रयास करेंगे ।”गुरु की महिमा वर्णी न जाए गुरु नाम जपो मन वचन काय” ।गुरु की अवर्णनीय महिमा का वर्णन बस इतना ही है कि प्रतिपल उनका जाप, उनका नाम ,आपके मन पर ,वचनों पर, और शरीर के एक एक अवयव पर स्पंदित होता रहे ।गुरु यह एक ऐसा महान, अनंत, अक्षय अक्षर है जिसका कभी क्षरण नहीं होता, और जो इसको जपले उसका कभी अकाल मरण नहीं होता। गुरु का आकर्षण ही सही मायने में गुरुत्वाकर्षण है । बाकी पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तो नाम मात्र का है। गुरु आपको ईर्ष्यालु नहीं बल्कि सही इंसान बना कर ईश्वर बनने का मार्ग बताते हैं ।गुरु आपको क्रूर नहीं बल्कि करुणा वान बनने की सीख देते हैं। गुरु आपके जीवन को शल्य से रहित होकर वात्सल्य से भर देते हैं। एक शिष्य बहुत अध्ययन करना चाहता था ।उसने अपने गुरु जी से कहा मैं अध्ययन करना चाहता हूं ।गुरु जी ने कहा ठीक है अध्ययन करना है तो यह किताबें ले आओ इनका अध्ययन किसी एकांत स्थान पर करना ।तुम्हें ज्ञान प्राप्त हो जाएगा ।अगर उसने गुरु जी से कहा होता कि मैं जीवन का सार जीवन का अनुभव प्राप्त करना चाहता हूं ।तो शायद गुरु ऐसी सलाह नहीं देते ।उसने कहा ज्ञान हासिल करना है ।आज हम बच्चों को किताबों का ज्ञान दिलाने ही तो भेजते हैं बाहर ।उसे अपने जीवन के अनुभव नहीं सिखाते उसे अपने से दूर रखते हैं ,दूर भेजते हैं। कि जाओ तुमको ज्ञान दिलवा रहे हैं ।पहले लोग अपने बच्चों को अपने पास रखते थे। अपने जीवन के अनुभव देते थे। ज्ञान तो अपने आप आ जाता था ।आचार्य कहते हैं विद्या कालेन पश्यते अर्थात विद्या काल पाकर अपने आप परिपक्व हो जाती है। उस समय 1 वर्ष तक अध्ययन किया वापस लौटा लेकिन मन को शांति नहीं मिली ।उसने कहा इतना अध्ययन चिंतन और एकांतवास के बाद भी मेरे मन को शांति नहीं मिली। गुरुजी ने कहा वापस जाओ फिर से ज्ञान हासिल करो और अब दूसरी किताब दे दी। क्योंकि तुम्हें ज्ञान हासिल करना है तो करो ज्ञान हासिल। और वह पढ़ता रहा वर्षभर लेकिन जब लौटने लगा तब भी उसका मन अशांत ही था ।लेकिन क्या करें? अब फिर यदि गुरुजी के पास जाते हैं तो वह और दूसरी किताबें दे देंगे। अब उसने सोचा कि इस बार मुझे मन की शांति प्राप्त करनी है। ज्ञान प्राप्त करूं अब की बार यह भाव नहीं थे । वह शिष्य इस बार अपने को बहुत शांत महसूस कर रहा था ।लौटते समय उस शिष्य को एक छोटा गाय का बछड़ा तड़पडाता मिला। हम और आप तो ज्ञान के धोखे में आगे बढ़ जाएंगे कि ऐसे तो बहुत से जीव है दुनिया में यह तो जिंदा होते रहते हैं मरते रहते हैं ।हम क्या करें? लेकिन वह शिष्य निकट गया और उसने उस बछड़े की आंखों में झांक कर देखा। उसे ऐसा लगा मानो वह उससे मदद ही मांग रहा हो ।पहली बार उस शिष्य को कुछ अलग अनुभव हुआ ,और उसने उसके घाव की मरहम पट्टी शुरू कर दी ।और वह उसके पास तब तक रुका रहा जब तक कि वह अपने पैरों पर खड़ा ना हो गया ।उसने जाते समय उस बछड़े की आंखों में झांक कर देखा तो उसे बहुत शांति मिली ।वह शांति उसे आज तक अध्ययन से, चिंतन से ,एकांत में भी नहीं मिली ।जब वह आश्रम पहुंचा तब गुरु ने उसकी ओर देखा तब गुरु ने भी उस शांति को महसूस किया। गुरु यह पहले ही जानते थे कि जिस दिन यह जीवन के सार को समझ लेगा उस दिन इसका मन स्वत: ही शांत हो जाएगा ।गुरु वही होता है जिसके जीवन में गुरुर नहीं होता है ।गुरु के मुख से निकला हुआ हर एक शब्द मंत्र होता है ,और गुरु के हाथ से लिखा हुआ हर एक अक्षर ग्रंथ होता है ।आपके जीवन में श्रेष्ठ गुरु ही आपके भगवान होते हैं ।बिना चाणक्य के क्या कभी चंद्रगुप्त का अस्तित्व बन पाता ।गुरु के शब्द उन्हें ही समझ में आते हैं जो श्रद्धा से भरे होते हैं। कहते भी हैं जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं ।गुरु जीवन को साक्षर नहीं अपितु सार्थक भी करते हैं। गुरु हमें बदलना सिखाते हैं ना कि बदला लेना ।वह सुई कभी नहीं खोती जिस में धागा होता है। उसी प्रकार वह शिष्य कभी नहीं भटक सकता जिसके सिर पर गुरु का हाथ होता है।

जयकुमार जैन जलज हटा

Aditi News

Related posts