नगर के गौरव प्रिय आशुतोष राणा के जन्मदिन पर कविता
(पं.सुशील शर्मा)
बड़ा कठिन है
आशुतोष सा हो जाना।
नीचे से ऊपर को जाना
फलना और फूलना
फिर डाली सा
झुक जाना।
दुःख में हँस मुस्काना
संघर्षों के पथ पर
अभय अजय सा सीना ताने
कुछ पाना कुछ दे जाना।
बड़ा कठिन है
आशुतोष सा हो जाना।
शिखर सभी को ऊँचे
दिखते
हँसते मुस्काते
अपनों को गले लगाते
मगर नींव का बोझ झेलना
नहीं किसी ने जाना।
बड़ा कठिन है
आशुतोष सा हो जाना
तिल -तिल कण- कण
जोड़- जोड़ कर
बनी इमारत ऊँची।
कुछ खुशियों का ताना बाना
कुछ पीड़ा थी भींची।
कृष्ण-कुटी के अंदर
दद्दा की ज्योति का ज्योतिर्मय हो जाना।
बड़ा कठिन है
आशुतोष सा हो जाना।
सबको साथ मिला कर चलना।
कुछ सुनना कुछ गुनना
सच को सच कहना
चाहे गैरों का हो या अपना
बड़ा कठिन है
आशुतोष सा हो जाना।
सबको बाहों में भर लेना
नेह प्रेम वात्सल्य
झरा कर आप्लावित कर देना
नहीं प्राथमिक कोई कभी भी
न कोई गैर समझना
कण भर प्रेम के बदले
सब कुछ दे जाना।
बड़ा कठिन है
आशुतोष सा हो जाना।
नहीं छोड़ना
कभी गिरे को
हाथ पकड़ कर
गले लगाना
गलती पर हल्की सी झड़की
फिर सहलाना
फिर बहलाना।
मुस्काना।
है अद्भुत व्यक्तित्व
प्रभुत्व
जय हो राना।
बड़ा कठिन है
आशुतोष सा हो जाना।
जन्मदिन पर अशेष शुभकामनाएँ।सहपरिवार आप स्वस्थ एवम प्रसन्न रहें।