32.1 C
Bhopal
April 30, 2024
ADITI NEWS
देशधर्म

महान कौन गुरु या गुरुवाणी किससे पूछूं?*,निर्यापक श्रमण श्री वीरसागर जी महाराज

महान कौन गुरु या गुरुवाणी किससे पूछूं?*,निर्यापक श्रमण श्री वीरसागर जी महाराज

कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर में अचार्य पद पदारोहण महामहोत्सव के अवसर पर परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री वीरसागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा कुंडलपुर का यह परिसर आज से 2 वर्ष पूर्व जब यहां महोत्सव हुआ था बड़े बाबा भी वही थे ,मंदिर जिनालय भी वही, जनता भी वही ,लेकिन कुछ ऐसा है जो नहीं है उस समय का दृश्य और आज का दृश्य दोनों के दृश्य में जमीन आसमान का अंतर है। उस समय हम सब के साथ हमारे पुज्यवर गुरुदेव विराजमान थे। गुरुदेव की चरण सन्निधि में हम सब उस महोत्सव को मनाने की तैयारी कर रहे थे आज हम सभी यहां विराजमान हैं आने वाले 2 दिन एक महोत्सव की तैयारी हो रही है ।महोत्सव वह भी था महोत्सव यह भी है ।लेकिन दो वर्ष पूर्व सबकी आंखों में उस समय आंसू थे पर हर्ष के आंसू थे और आज भी दो प्रकार के आंसू हैं ।आचार्य भगवान का एक हाईकू याद आ रहा है ।महान कौन गुरु या गुरु वाणी किससे पूछूं ।जब हम गुरु को देखते हैं तो गुरु का शरीर नजर आता है पर्याय नजर आती है जो पर्याय होती है शरीर होता है वह क्षणभंगुर होते हैं ।वह छूटने वाला होता है ।लेकिन जब हम गुणों की ओर दृष्टि डालते हैं गुण हमें सशास्वत रखते ।आचार्य भगवन ने जब यह हाईकू लिखा हम सब संघ में थे।उस समय गुरु के मुख से हाईकू को सुना ।कौन महान है हम आपसे यह प्रश्न कर लें आचार्य भगवन महान है कि आचार्य भगवन की वाणी महान है बताइए कौन महान है ।किसे बोलते गुरु आचार्य भगवन ने प्रश्न चिन्ह छोड़ा है ।आचार्य भगवान की ही कृति है आचार्य भगवान की ही रचना है जब इसे सुनते चिंतन लाते हैं तो तरह-तरह के विचार आ जाते हैं ।गुरु वाणी गुरु से ही उत्पन्न होती है ।उस दृष्टि से देखा जाए तो गुरु भी महान होते हैं गुरु हमेशा से नहीं रहते देखा जाए तो गुरु वाणी महान है ।गुरु के जाने के बाद भी गुरु वाणी रहती है ।हमने आदिनाथ भगवान को कुंडलपुर के बड़े बाबा को नहीं देखा लेकिन वह आदि प्रभु आज भी जीवन्त है ।अपनी जिनवाणी के माध्यम से महावीर प्रभु आज भी जीवन्त है।अपनी ध्वनि के माध्यम से वे अचार्य भगवन्त आज भी जीवित हैं। अपनी वाणी के माध्यम से कुछ लोग ऐसे महान होते हैं इस युग में उनकी महानता उनके साथ नहीं जाती है बल्कि और भी बढ़ती जाती है ।उनकी प्रतिष्ठा और बढ़ती चली जाती ।एक प्रश्न आ रहा कुंडलपुर के बड़े बाबा कब से विराजमान है जानते हो कब से विराजमान है1500 वर्ष से ऊपर हो गए ।कुंडलपुर के बड़े बाबा को पहचान किसने दिलाई हम आपसे पूछना चाहते हैं बड़े बाबा वही है आदिनाथ प्रभु वही हैं लेकिन आदिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा इस दुनिया में किसने कराई ।कुंडलपुर की पहचान किसने कराई है ।कुंडलपुर आने वाले श्रावकों की लाइन लगी रहती है वह किसने दिलाई है। आचार्य भगवान ने छोटे बाबा ने। तो भगवान को भी पहचान दिलाने वाले हो जाते हैं कुछ ऐसे महापुरुष हो जाते हैं जो अपनी साधना के बल पर प्रभु को भी ऊंचा स्थान दिला देते हैं ।लोगों के हृदय में अपनी जगह बनवा देते हैं। अपने लिए तो हर कोई जीवन जी लेता है इसमें कोई बड़ी बात नहीं ।हर एक इंसान जीता है लेकिन महत्व तब है जब हम जीते जी कुछ ऐसा कार्य कर जाएं कि हमारे द्वारा बड़ों को प्रतिष्ठा मिल जाए ।प्रभु बहुत बड़े होते हैं भगवान से बड़े कोई नहीं होते। लेकिन एक छोटा व्यक्ति अपनी तपस्या के बल पर अपनी बलिदान साधना के बल पर अपने त्याग के बल पर अपनी श्रद्धा और सर्मपण के बल पर उन बड़ों की भी बहुत बड़ा बना देते हैं । इसी कारण ये बड़े बाबा कहलाए। जब आचार्य भगवान 1976 में प्रथम बार आए उस समय बड़े बाबा की क्या स्थिति थी बड़े बाबा तो महान है जो भगवान हमारे लिए मिले उनकी क्या स्थिति थी। आप सभी लोगों ने देखा होगा उसे दृश्य को ।जब हम आज इस जिनालय के दर्शन करने जाते हैं तो मन भाव विभोर हो जाता है। इस दृश्य को देखकर मन गदगद हो जाता है ।बड़े बाबा के दर्शन बाद में होते हैं छोटे बाबा के दर्शन पहले होते हैं ।कि यह कृति जिसने निर्माण किया है जिसकी परिकल्पना है जिसकी सोच है आचार्य भगवन की दूर दृष्टि है। आचार्य भगवन का प्रयास अपने आप में अद्भुत विजन है ।हमने कुंदकुंद भगवान को नहीं देखा आचार्य समंतभद्र को नहीं देखा आचार्य नेमीचंद अमृतचंद आदि किसी को भी नहीं देखा ।दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो की जाने के पश्चात भी अपनी ख्याति बढ़ाते चले जाते हैं। वैसे तो मरण शरीर का होता है लेकिन शास्त्रों में आता है व्यक्ति कुछ ऐसे कार्य कर जाता है उस कार्य के बल पर हमेशा के लिए अमर हो जाता है। और उन्ही के किए हुए कार्य हैं जो आज हम सबको मिले हैं ।अब हमारा क्या कर्तव्य है गुरुवर ने हम सबके लिए आप सबके लिए क्या-क्या नहीं किया ।क्या हम सब ने लेना सीखा है अपने गुरुओं से ,पूज्य पुरुषों से क्या सिर्फ लेना सीखा है तो हमसे बड़ा कृतघ्नी कोई नहीं हमसे बड़ा स्वार्थी कोई नहीं है ।लेकिन जो उपकार हमारे ऊपर किया है अपनी सामर्थ के अनुसार अपनी शक्ति के अनुसार हम क्या दे पाए वैसे अपनी क्षमता नहीं है हम कुछ दे पाए ।जो हमेशा महान होते हैं बड़े होते हैं जिनके हाथ हमेशा ऊपर को होता है वह ही दुनिया को कुछ देते हैं अपन तो लेने वाले हैं हमेशा हाथ अपना नीचे ही रहा।जन्म जिन्होंने दिया है शरीर की कीमत नहीं होती शरीर के जन्म की कोई कीमत नहीं होती। शरीर का जन्म तो अनंत बार हुआ है। सबका हुआ है उस जन्म की कीमत होती जब भीतर से कुछ फूटता है ,जब अंडा बाहर के दबाब से फूटता है तो एक जीवन अंत हो जाता है ।वही अंडा भीतर के दबाब से फूटता है एक जीवन की शुरुआत हो जाती है। जीवन की शुरुआत होती है यदि जन्म सही से होता है वह तभी होता है जब वह भीतर से कुछ फूटे और भीतर से कुछ उत्पन्न हो जब कोई व्यक्ति हमारे जीवन में आता है हमारी दृष्टि खुलती है हमारे देखने का नजरिया खुलता है हम अपने आप को समझ पाते । प्रस्तुति– जयकुमार जैन जलज मीडिया प्रभारी

Aditi News

Related posts