कुंडलपुर में पिच्छिका परिवर्तन समारोह आयोजित हुआ
कुंडलपुर ।पिच्छिका दिगंबर जैन साधु का अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण है ,जिसके बिना जैन साधु गमनागमन एवं पठन-पाठन आदि कोई भी प्रवृति नहीं कर सकता। पिच्छिका प्रतिलेखन अर्थात परिमार्जन में सहायक रहती है। यह पिच्छिका मयूरपंख की ही बनती है ।चातुर्मास के अंत में इसे बदलकर नई पिच्छिका ग्रहण कर ली जाती है। इस तरह पुरानी पिच्छिका अलग कर नई को ग्रहण कर लेना ही पिच्छिका परिवर्तन है उपरोक्त उद्गार संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने कुंडलपुर में पिच्छिका परिवर्तन समारोह में व्यक्त करते हुए आगे कहा यह हृदय परिवर्तन का कार्य है ।अपनी जीवन चर्या को सात्विक संयमित बनाने वाले कुछ श्रावक ग्रहस्थ मुनि गणों को नई पिच्छिका प्रदान करते हैं और कुछ पुरानी पिच्छिका ग्रहण करते हैं। इस अवसर पर कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी पदाधिकारी एवं बाहर से पधारे भक्त गणों ने मुनि श्री को श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद ग्रहण किया। मंगलाचरण, चित्र अनावरण ,दीप प्रज्वलन के पश्चात शास्त्र भेंट किए गए। आचार्य श्री की संगीतमय पूजन हुई ।श्रावक गणों ने अलग-अलग समूह में नाचते गाते हुए अष्टद्रव्य समर्पित किए। इस अवसर पर सांस्कृतिक मनमोहक प्रस्तुति हुई ।मुनि श्री को नई पिच्छिका भेंट करने का सौभाग्य समस्त ब्रह्मचारी भैया एवं दीदी जी कुंडलपुर को प्राप्त हुआ ।मुनि श्री की पुरानी पिच्छिका प्राप्त करने का सौभाग्य प्रकाश चंद जैन श्रीमती मालती अमित जैन शास्त्री कुंडलपुर को प्राप्त हुआ। सकल जैन समाज कुंडलपुर एवं बाहर से पधारे हुए भक्त जनों की उपस्थिति रही।